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________________ मिद्धों के स्वरूप में और विशेषता व्यक्त करते हुए आचार्य कहते हैं कि अट्ठविह कम्म-वियला सीदीभूदा णिरंजणा णिच्चा। अट्ठगुणा किदकिच्चा, लोयग्गणिवासिणो सिद्धा।' अर्थात् जो आठ प्रकार के कर्मों से रहित हैं, अत्यन्त शान्तिमय हैं, निरञ्जन हैं, या आठ गणों से यक्त हैं. कतकत्य हैं और लोक के अग्रभाग में निवास करते हैं वे सिद्ध भगवान् हैं। . इस गाथा में दिया गया एक-एक शब्द सिद्ध भगवान् की विशेषता को प्रकट करने वाला है। आचार्य का आशय यह है कि - सिद्ध, निष्ठित, निष्पन्न, कृतकृत्य और सिद्ध-साध्य ये एकार्थवाची हैं। मुक्तजीव सिद्ध होते हैं। वे सिद्ध भगवान्, ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय इन मूलप्रकृति रूप आठ कर्मों का, इन्हीं की उत्तर प्रकृतियाँ 148 हैं और उत्तरोत्तर प्रकृतियाँ असंख्यात हैं, अविभागी प्रतिच्छेदों की अपेक्षा अनन्त हैं, इन सबका क्षय और इन सब प्रकृतियों सम्बन्धी स्थिति, अनुभाग और प्रदेश के बन्ध, उदय और सत्त्व आदि का सम्पूर्ण रूप से क्षय कर देने से इन कर्मों से 'विपला' विगत अथवा प्रत्युत हैं। दूसरा विशेषण है 'सीदीभूदा' पूर्व संसारावस्था में जन्म-मरणादि दु:खों से तथा राग-द्वेष-मोह रूप दु:खों के ताप से तप्त अशान्त थे। अब मोक्षावस्था में इन सबका अभाव हो जाने से और आत्मोत्पन्न अनन्त सुखामृत का पान करने से अत्यन्त शान्त हो गये हैं। तृतीय विशेषण है 'णिरंजणा' अर्थात् अंजन, कज्जल, कालिमा रहित। यह कालिमा जिस प्रकार पदार्थ के स्वरूप को मलिन कर देती है, उसी प्रकार ज्ञानावरणादि कर्म विशुद्ध आत्मस्वभावादि की मलिनता का कारण होने से कर्म अञ्जन हैं। इन कर्मों को निष्क्रान्त कर देने से सिद्ध भगवान निरञ्जन हैं। चतुर्थ विशेषण है 'णिच्चा' अर्थात् नित्य। यद्यपि सिद्धों में प्रतिसमय अगुरुलघुगुण के द्वारा स्वभाविक अर्थ पर्याय रूप उत्पाद व्यय होता रहता है तथापि - पं. सं. प्रा. 1/31, ध. 1/23, गो. जी. का. 68 ध. पु. 1 पृ. 200 190 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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