________________ * केवली समवसरण में जब तक स्थित हैं तब तक उनकी देशना नहीं खिरती है। समवसरण के बाहर जाने पर देशना हो भी सकती है, नहीं भी। तीर्थङ्कर केवली की दिव्यध्वनि वर्ष पृथक्त्व नियम से खिरती है। * सामान्य केवली का जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त एवं उत्कृष्ट काल 8 वर्ष अन्तर्मुहुर्त कम एक पूर्व कोटि प्रमाण है। * सामान्य केवली की अपेक्षा दिव्यध्वनि खिरने का उत्कृष्ट काल 8 वर्ष अन्तर्मुहुर्त , कम एक पूर्व कोटि है। * इस गुणस्थान में हर अन्तर्मुहुर्त बाद से सातावेदनीय एवं असातावेदनीय का उदय युगपत् होता है तथा बीच के काल में बंधी एवं बंधने वाली साता का उदय होता * इस गणस्थान के अन्तिम अन्तर्महर्त में यदि अघातिया कर्म की स्थिति अन्तर्महर्त से ज्यादा है, तो वे केवली, केवली-समघात करते हैं। * समुद्घात के बल पर तीन अघातिया कर्मों की स्थिति अन्तर्मुहुर्त कर देते हैं। * जिन जीवों को उम्र पूर्ण होने से 6 माह पूर्व केवलज्ञान की प्राप्ति हुई है, वे जीव नियम से समुद्घात करते हैं। 6 माह से अधिक स्थिति वाले जीव समुद्घात करें अथवा न करें। * इस गुणस्थान के जीवन काल में अन्तिम अन्तर्मुहुर्त को छोड़कर कोई भी ध्यान नहीं होता है। * सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाती तीसरा शुक्ल ध्यान अन्तिम अन्तर्मुहुर्त में होता है, जिसके बल पर सूक्ष्म काय योग का निरोध होता है। * तीसरे शुक्ल ध्यान के बल पर ही तीन अघातिया कर्मों की स्थिति आय के बराबर होती है। * इस गुणस्थान वाले जीव को भूख-प्यासादि 18 दोष नहीं होते। * इस गुणस्थान में केवल सातावेदनीय का ही बंध होता है जो कि उसी समय फल देकर खिर जाता है। 184 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org