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________________ जीव और पञ्चम गुणस्थानवी जीव ये सब सीधे अप्रमत्त गुणस्थान को प्राप्त कर सकते है। पुनः सप्तम गुणस्थान से गिरकर 6वें गुणस्थान को प्राप्त होता है। कोई भी जीव सीधे गणस्थान पर आरोहण नहीं कर सकता है ऐसा सिद्धान्त है।' ऐसे कई दृष्टान्त प्राचार्यों ने ग्रन्थों में उल्लिखित किये हैं जिनसे ये सिद्ध होता है कि कोई भी जीव सीधे वें गुणस्थान को प्राप्त नहीं होता है। वह सप्तम गुणस्थान से गिरने की अपेक्षा ही बनता है। प्रमत्त विरत गुणस्थान की विशेषतायें * इस गुणस्थान में 12 कषायों का तो अनुदय होता है एवं संज्वलन और यथायोग्य नव नोकषायों का उदय होता है। *क्षायिक सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा अनन्तानुबंधी कषाय का सत्त्व न होने से आठ कषायों का अनुदय एवं संज्वलन और नव नोकषायों का उदय होता है। * छठवाँ गुणस्थान हमेशा गिरने की अपेक्षा ही बनाता है। अर्थात् पहले गुणस्थान से लेकर पंचम गुणस्थान तक के कोई भी जीव प्रमत्तसंयत को प्राप्त नहीं हो सकते। * अप्रमत्त संयती ही इस गुणस्थान को प्राप्त होता है। * छठवें गुणस्थान वाला जीव प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से पंचम गुणस्थान को, अप्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से चौथे गुणस्थान को, सम्यग्मिथ्यात्व के उदय से तीसरे गुणस्थान को, अनंतानुबंधी कषाय के उदय से दूसरे गुणस्थान को तथा मिथ्यात्व के उदय से पहले गुणस्थान को प्राप्त होते हैं। * इस गुणस्थान का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त एवं सामान्य अवस्था में जघन्य काल भी अन्तर्मुहर्त है। मरण की अपेक्षा जघन्यकाल एक समय भी घटित होता है। * सप्तम गुणस्थान की अपेक्षा इस गुणस्थान का काल दुगुना है। * मुनिराज यदि देवायु का बंध का प्रारम्भ करें तो इसी गुणस्थान से करते हैं तथा पूर्णता छठवें एवं सातवें गणस्थान में सम्भव है। ध. 5/74,75 152 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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