________________ गर्भज तिर्यञ्चों की अपेक्षा इस गुणस्थान का उत्कृष्ट काल 2,4,5,6,8,10 आदि माह कम एक पूर्वकोटि प्रमाण है। * मनुष्यों की अपेक्षा इस गुणस्थान का उत्कृष्ट काल आठ वर्ष अन्तर्मुहूर्त कम एक पूर्व कोटि प्रमाण है। * इस गुणस्थानवी जीव मरण करके सोलहवें स्वर्ग तक उत्पन्न हो सकते हैं। * छठवें गुणस्थान वाला जीव प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से पंचम गुणस्थान 3 को प्राप्त होता है। * मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानुबंधी एवं अप्रत्याख्यानावरण के अनुदय से पंचम . गुणस्थान प्राप्त करते हैं। * अविरत सम्यक्त्वी जीव अप्रत्याख्यानावरण कषाय के अनुदय से पंचम गुणस्थान प्राप्त करता है। तीर्थङ्करों के 8 वर्ष अन्तर्मुहर्त बाद (जन्म के) पंचम गुणस्थान हो जाता है। * सम्मूर्च्छन तिर्यञ्च क्षायोपशमिक सम्यक्त्व के साथ ही पंचम गुणस्थान में जाते हैं। * गर्भज तिर्यञ्च उपशम एवं क्षयोपशम सम्यक्त्व के साथ पंचम गुणस्थान में जाते * मनुष्य गति के जीव तीनों ही सम्यक्त्वों के साथ पंचम गुणस्थान को पा सकते हैं। विशेषता यह है कि यदि क्षायिक के साथ जावे तो चतुर्थ एवं छठवें गुणस्थानवर्ती एवं उपशम के साथ जावे तो मिथ्यादृष्टि, द्वितीयोपशम के साथ जावे तो 6वें गुणस्थानवर्ती एवं क्षयोपशम के साथ जावे तो मिथ्यादृष्टि, अविरत सम्यक्त्वी, संयती जाता है। * तिर्यञ्चों में यदि कोई व्रत धारण करे तो वह नियम से संयतासंयती ही होता है। * संयतासंयती तिर्यञ्च असंख्यात हैं एवं मनुष्य 13 करोड़ हैं। * पंचम गुणस्थानवर्ती तिर्यञ्च क्षायिक सम्यक्त्वी नहीं होते हैं ऐसा नियम है। 147 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org