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________________ इस गुणस्थान का जघन्य एवं उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। * मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व एवं सम्यक्त्व प्रकृति की सत्ता वाला सादि मिथ्यादृष्टि जीव इस गुणस्थान को प्राप्त करता है। *चौथे, पञ्चम एवं छठवें गुणस्थानवर्ती औपशमिक एवं क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि जीव के मिश्र अर्थात् सम्यग्मिथ्यात्व का उदय आने पर यह गुणस्थान प्राप्त होता * मिथ्यात्व एवं सम्यक्त्व प्रकृति दोनों का अंश होने के कारण सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति को उदय की अपेक्षा देशघाती तथा सत्ता की अपेक्षा सर्वघाती कहा है, इसी विवक्षा से इसमें क्षायोपशमिक भाव है। * अनादि मिथ्यादृष्टि जीव एवं सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व प्रकृति की उदवेलना करने वाला सादि मिथ्यादृष्टि जीव इसको प्राप्त नहीं होता है। 4. अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान इस गुणस्थान का नाम 'असंजद सम्माइट्ठी' अर्थात् अविरत सम्यग्दृष्टि है। संयम विहित सम्यग्दृष्टि असंयत सम्यग्दृष्टि कहलाते हैं। जीव इस गुणस्थान में दर्शन मोहनीय कर्म का अभाव हो जाने से यद्यपि सम्यग्दृष्टि हो जाते हैं किन्तु चारित्र मोह के उदयवश संयम अङ्गीकार नहीं कर पाते हैं, फिर भी दृष्टि में समीचीनता आ जाने के कारण सम्यग्दृष्टि के सभी आवश्यक गण उनमें प्रकट हो जाते हैं। इस गुणस्थान में प्रयुक्त 'अविरति' का स्वरूप बताते हुए आचार्य कहते हैं कि 'निर्विकार स्वसंवेदन से विपरीत अव्रत रूप विकारी परिणाम का नाम अविरति है। इसी विषय को स्पष्ट करते हुए आचार्य ब्रह्मदेव सूरी लिखते हैं कि अन्तरंग में निज परमात्मस्वरूप की भावना से उत्पन्न परम सुखामृत में जो प्रीति, उससे विलक्षण तथा बाह्यविषय में व्रत आदिक को धारण न करना सो अविरति है। इसमें यह 'अविरति' पद संयमाभाव का वाचक है तथा अन्तदीपक है अर्थात् यह पद सूचित करता है कि इस भावसंग्रह गा. 259 स. सा. ता. वृ. गा. 88 द्र. सं. टीका गा. 30 121 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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