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________________ (खटटा-मीठा) न तो दही का है, न ही गुड़ का परन्तु इनके मिश्रण से तीसरा स्वाद उत्पन्न होता है, जिसे हम खट्टा या मीठा नहीं कह सकते हैं। ठीक इसी प्रकार पाम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से जो मिश्र रूप भाव होते हैं, उनका अन्तर्भाव न मेथ्यात्व में किया जा सकता है, न ही सम्यक्त्व में। अतः इस गुणस्थान की सत्ता पृथक् रुप से सिद्ध होती है। सम्यग्मिथ्यात्व में जो मिश्ररूप श्रद्धान है, वह संशय मिथ्यात्व या विनय मिथ्यात्व से सर्वथा भिन्न है। वैनयिक तथा संशय मिथ्यात्व में तो सभी देवों में तथा सब शास्त्रों में से किसी एक भी भक्ति के परिणाम से मुझे पुण्य होगा, ऐसा मानकर संशयरूप से भक्ति करता रहता है, उसको किसी एक देव में निश्चय नहीं है। परन्तु मिश्र गुणस्थानवी जीव के दोनों में निश्चय होता है। अतः सम्यग्मिथ्यात्व का अन्तर्भाव संशय या वैनयिक मिथ्यात्व में नहीं किया जा सकता है।' मिश्र गुणस्थान की विशेषतायें * इस गुणस्थान में जीव को तत्त्वों के प्रति श्रद्धान एवं अश्रद्धान युगपत् प्रकट होता * पूर्व स्वीकृत देवताओं का त्याग किये बिना अरिहंत भी देव हैं, ऐसी मान्यता यहाँ बनती है। * जात्यन्तर सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति का यहाँ उदय होता है। * मिश्र गुणस्थानवी जीव ऊपर चौथे गुणस्थान को तथा गिरने की अपेक्षा मिथ्यात्व गुणस्थान को प्राप्त होता है। इस गुणस्थान में मिथ्यात्व एवं सम्यक्त्व प्रकृति स्तिवुक संक्रमण के द्वारा सम्यग्मिथ्यात्व रूप फल देती है। * इस गुणस्थान में किसी भी आयु का बंध एवं मरण नहीं होता है। . * इस गणस्थान में कार्मण काय योग, गत्यानुपूर्वी, विग्रहगति, तीर्थकर प्रकृति की सत्ता, मारणान्तिक समुद्घात ये सब नहीं होती हैं। निर्वृत्यपर्याप्तक एवं अपर्याप्तक अवस्था भी नहीं होती है। द्र. सं. टी. 13/33/4 120 Jain Education International www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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