________________ कि परवर्तीकाल में उसमें कितने पाठान्तर हो गये हैं। इस साहित्य पर जो महाराष्ट्री प्रभाव आ गया है, वह लिपिकारों और टीकाकारों की अपनी भाषा के प्रभाव के कारण है। उदाहरण के रूप में, सूत्रकृतांग का 'रामपुत्ते' पाठ चर्णि में 'रामाउत्ते' और शीलांग की टीका में 'रामगुत्ते' हो गया। अतः, आगमों में महाराष्ट्री प्राकृत के प्रभाव को देखकर उनकी प्राचीनता पर संदेह नहीं करना चाहिए, अपितु उन ग्रन्थों की विभिन्न प्रतों एवं नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीकाओं के आधार पर पाठों के प्राचीन स्वरूपों को सुरक्षित रखने का प्रयत्न करना चाहिए। वस्तुतः, आगम-साहित्य में विभिन्न काल की सामग्री सुरक्षित है। इसकी उत्तर सीमा ई.पू. पांचवी-चौथी शताब्दी और निम्न सीमा ई.सन् की पांचवी शताब्दी है। वस्तुतः, आगम-साहित्य के विभिन्न ग्रन्थों का या उनके किसी अंश-विशेष का काल निर्धारित करते समय उनमें उपलब्ध सांस्कृतिक सामग्री, दार्शनिक-चिन्तन की स्पष्टता एवं गहनता, भाषा-शैली आदि सभी पक्षों पर प्रामाणिकता के साथ विचार करना चाहिए। इस दृष्टि से अध्ययन करने पर ही यह स्पष्ट बोध हो सकेगा कि आगम-साहित्य का कौन सा ग्रन्थ अथवा उसका कौन-सा अंश-विशेष किस काल की रचना ____ आगमों की विषय-वस्तु सम्बन्धी निर्देश श्वेताम्बर परम्परा में हमें स्थानांग, समवायांग, नन्दीसूत्र, नन्दीचूर्णि एवं तत्त्वार्थभाष्य में तथा दिगम्बर परम्परो में तत्त्वार्थ की टीकाओं के साथ-साथ धवला, जयधवला में मिलते हैं। तत्त्वार्थसूत्र की दिगम्बर परम्परा की टीकाओं और धवलादि में उनकी विषय-वस्तु सम्बन्धी निर्देश मात्र अनुश्रुतिपरक हैं, वे ग्रन्थों के वास्तविक अध्ययन पर आधारित नहीं हैं। उनमें दिया गया विवरण तत्त्वार्थभाष्य एवं परम्परा से प्राप्त सूचनाओं पर आधारित है, जबकि श्वेताम्बर परम्परा में स्थानांग, समवायांग, नन्दी आदि आगमों और उनकी व्याख्याओं एवं टीकाओं में उनकी विषय-वस्तु का जो विवरण है वह उन ग्रन्थों के अवलोकन पर आधारित है, क्योंकि प्रथम तो इस परम्परा में आगमों के अध्ययन-अध्यापन की परम्परा आज तक जीवित चली आ रही है। दूसरे, आगम-ग्रन्थों की विषय-वस्तु में कालक्रम से क्या परिवर्तन हुआ है, इसकी सूचना श्वेताम्बर परम्परा के उपर्युक्त आगम-ग्रन्थों से ही प्राप्त हो जाती है। इनके अध्ययन .. प्राकृत का जैन आगम साहित्य : एक विमर्श /21 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org