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________________ अब तोहिं जान न दैहूँ राम पियारे, ज्यूं मावै त्यूँ होइ हमारे। बहुत दिनन के बिछुरे हरि पाए, भाग बटे धरि बैठे आए।।। प्रियतम के घर आने पर कबीर की आत्मा रूपी प्रियतम आनन्द विभोर हो उठती है।128 प्रियतम को देखते ही कबीर की साधक आभा रामरूपी प्रियतम के रंग में ऐसी रंग जाती है कि चारों ओर उसे प्रियतम की लाली ही दिखाई देती है, जैसे लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल। लाली देखन मैं गई मैं भी हो गई लाल।। किन्तु कबीर द्वारा राम की प्रियतम के रूप में की गई उपासना में भी योग-साधना का रहस्य समाहित है। उसकी यह साधना अन्तधिना बन जाती है और वह गूढ़ प्रतीक रूप में अभिव्यक्त होती है। कबीर की रचनाओं में विरह-भाव गूढ़ एवं सूक्ष्म तत्त्वों की अनुभूतियों को प्रकट करता है। सूफीवाद के कारण कबीर में निर्गुण राम के प्रति असीम प्रेम है। उनकी विरह-वेदना अत्यन्त धार्मिक रूप में अभिव्यक्त हुई है जिया मेरा फिरे रे उदास। राम बिन निकली न जाई सास, अजहूँ कौन आस।।। इसी तरह एक और पद में भी उनकी विरह-व्याकुलता का सुन्दर चित्रण हुआ है तलफै बिन बालम मोर जिया, दिन नहीं चैन रात नहीं निंदया।। प्रियतम की राह निहारते-निहारते उनकी आँखें लाल हो गई हैं और लोग समझते हैं कि कबीर की आँखें दुःखने लगी हैं, जैसे अंषट्रिया प्रेम कसाइयां लोग जागै दुषडियां। साईं अपणै कारणै रोइ रोइ रातड़ियां।। 35 प्रियतम से मिलने के लिए आतुर कबीर रूपी प्रियतमा की व्याकुलता में निहित रहस्य भावना काव्य को मार्मिक बना देती है अब मोहि ले चल नणद के बीर, अपने देसा। इन पंचन मिलि लूटी हूँ, कुसंग आहि बिदेसा।। इस गहन तत्त्व की कथा अकथ्य है कहे कबीर यह अकथ कथा है, कहतां कही न जाइ।।135 उपर्युक्त उद्धरणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कबीर में साधनात्मक और भावनात्मक रहस्यवाद की धारा सहज रूप में प्रस्फुटित हुई है। सगुण भक्त कवियों में रहस्यवाद भक्ति काव्य में न केवल निर्गुणमार्ग की ज्ञानाश्रयी और प्रेममार्गी शाखाओं में रहस्यवाद का निदर्शन हुआ है प्रत्युत् सगुण शाखा के अन्तर्गत रामभक्त और कृष्णभक्त सन्त कवियों में भी रहस्यात्मक प्रवृत्ति 495 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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