________________ गंगा जमुना मांझरे बहई नाई। तहि बुडिलि मातंगि पोइला लीले पार करेई / / सिद्धों की वाणी में यौगिक और तान्त्रिक क्रियाओं के कारण नाड़ी, षट्चक्र, अनहतनाद बिन्दु इत्यादि तत्त्वों की आन्तरिक सूक्ष्म गतिविधियों का वर्णन भी किया गया है, जैसे नारी शक्ति दिअ धरिअ खदे। अनहद डमरु बाजइ वीर नादे। कान्ह कपालि जोगी पइट्ठि अचारे। देह-नजरी बिचरइ एकारे।। सिद्धों की वाणी में यद्यपि रहस्यात्मक प्रवृत्ति के दर्शन होते हैं, तथापि उनकी यह रहस्य भावना अधिकांशतः साधनात्मक है। सिद्ध वाणी में सरहपा की कृतियों में कहीं-कहीं प्रवृत्त रहस्यवाद की झलक अवश्य मिलती है।100 इस प्रकार सिद्धों में साधनात्मक रहस्यवाद का पर्याप्त विकास हुआ है। सिद्ध निर्गुण और निराकार तत्त्व की साधना करते थे। आगे चलकर हिन्दी-साहित्य में मध्ययुगीन कबीर आदि सन्त कवियों के रहस्यवाद पर इन सिद्धों की रहस्यात्मक साधना का प्रभुत्व स्पष्टतः लक्षित होता है। (ब) नाथ सम्प्रदाय में रहस्यवाद बौद्ध सिद्धों की यह रहस्यात्मक साधना संभवतः 7वीं से 12वीं शताब्दी तक अनवरत प्रवहमान रही, किन्तु बाद में उत्कट वामाचार के कारण अश्लीलता और वीभत्सता आ गई। परिणामतः इनका प्रभाव चरम सीमा पर पहुंचकर हासोन्मुख हो गया। ऐसी स्थिति में बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा में से ही नाथ सम्प्रदाय का उद्भव हुआ। गुरु गोरखनाथ इसके आदि-प्रवर्तक माने जाते हैं। महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री भी गोरखनाथ को वज्रयानी बौद्ध मानते हैं। नाथ सम्प्रदाय की साधना अन्तर्मुखी है। इसमें हठयोग पर अत्यधिक बल दिया गया है। इसीलिए इस पंथ की साधना को हठयोग के नाम से पहचाना जाता है। सिद्धों की भांति इसमें भी साधनात्मक रहस्यवाद ही पाया जाता है। वस्तुतः इस पंथ में अधिकांशतः वे ही सब बातें दृष्टिगोचर होती हैं, जो सिद्ध सम्प्रदाय में वर्णित हैं। लौकिक प्रतीकों के द्वारा रहस्य तत्त्व की गूढ़ अभिव्यक्ति की चेष्टा नाथपंथियों में भी मिलती है, यथा-शून्य, निरंजन, नाद, बिन्दु, सुरति, निरत, सहज इत्यादि सिद्ध साहित्य के पारिभाषिक शब्द देखिए गगन मंडल में उंधा कूआ, तहां अमृत का वासा। सगुरा होय सो भरि भरि पीवै, निगुरा जाइ पिपासा। इडा, पिंगला और सुषुम्ना का प्रयोग भी गोरखबानी में इस प्रकार है अवधू ईडा मारग चन्द्र भणीजै, प्यंगुला मारण भाणं। सुषुमनां मारण वाणी बोलिए त्रिय मूल अस्थानं / / इसमें अनहदनाद की रहस्यमय अभिव्यक्ति भी निम्न रूप में वर्णित हुई है ... अनहद सबद बाजता रहै सिध संकेत जी गोरख कहै। नाथ सम्प्रदाय के हठयोग की साधना पद्धति का अवलोकन करने पर विदित होता है कि उसमें अनेक तत्त्वों में गूढार्थ समाहित है। सभी तत्त्व सूक्ष्म और आन्तरिक होने से साधनात्मक रहस्यवाद की मानते हैं।102 . . 491 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org