________________ अन्तर बताता है, जिन्हें प्रायः एक ही अर्थ में लिया जाता है। उनके अनुसार looks', 'seems' तथा 'appears' 176 के प्रयोगों में महत्त्वपूर्ण अन्तर है। इसी प्रकार 'reality' का विश्लेषण करते समय 'artificial', 'false', 'bogus', 'toy', 'synthetic', 'illusory', 'apparent' आदि शब्दों के प्रयोगों की चर्चा करता है। आस्टिन के अनुसार real का कोई एक सामान्य अर्थ नहीं है, क्योंकि यहाँ मुख्य महत्त्व इसमें निषेधात्मक प्रयोग का है। Real का अर्थ जिससे इसका विरोध दिखाया जाता है, उस पर निर्भर है। आस्टिन के अनुसार पूर्णतः सत्य एवं निश्चित कथनों की खोज भी उपर्युक्त सिद्धान्त के लिए उत्तरदायी है। इसके अनुसार कथनों को दो वर्गों में विभाजित करना, जिनमें एक केवल इन्द्रिय-प्रदत्तों का वर्णन करना है, पूर्णतः सत्य है और वस्तु कथनों का साक्ष्य प्रस्तुत करता है। और दूसरा वस्तुओं के विषय में है जो कभी भी निश्चित नहीं है, गलत है। उदाहरण के लिए-यह काल दिखता है-कथन वापस लिया जा सकता है या संशोधित किया जा सकता है और यह सुखद है, पूर्णतः निश्चित हो सकता है। आस्टिन मानता है कि किसी कथन में विश्वास उसके सन्दर्भ पर निर्भर करता है, आधार पर नहीं। उसके अनुसार “प्रमाण क्या है, निश्चित क्या है, संदिग्ध क्या है, प्रश्नों का कोई सामान्य उत्तर नहीं हो सकता। यदि ज्ञानमीमांसा इन प्रश्नों के उत्तर में निहित है तो यह संभव नहीं। 79 सन्दर्भो के अनुसार इन प्रश्नों के उत्तर परिवर्तित होते रहते हैं। आस्टिन उस सिद्धान्त का ही खण्डन करता है, जिसके अनुसार हम केवल इन्द्रिय प्रदत्तों का ही प्रत्यक्ष करते हैं, वस्तुओं का नहीं। वह केवल इस मत की समर्थन युक्तियों की आलोचना नहीं करता, बल्कि इस द्वैत का भी निषेध करता है। प्रत्यक्ष के विषय किसी एक सामान्य प्रकार के अन्तर्गत नहीं आते। यह कहना निरर्थक है कि सामान्य व्यक्ति एक ही प्रकार की चीजें देखता है। हमें व्यक्ति 'ध्वनि, नदियाँ, लपटें, इन्द्र धनुष, वाक्य, छाया, प्रतिभा आदि दिखते है। जिन्हें एक प्रकार में नहीं रखा जा सकता, जैसे पानी के बाहर झुकी हुई छड़ी। पश्चात् प्रतिमा-दीवार पर पड़े रंग के धब्बे की तरह नहीं दिखती। आस्टिन यह भी दिखाता है कि जो प्रत्यक्ष ठीक नहीं होते, उनके कारण हमारी इन्द्रियों के दोष या माध्यम की गड़बड़ी या गलत रचना है और इन सबका एक आधार नहीं होता। - आस्टिन के विरोध में कहा जाता है कि उसकी विधि वास्तविक दर्शन नहीं है। आस्टिन इसका कोई उत्तर नहीं देता। जो लोग अन्य विधियों को अपनाना चाहते हैं, स्वतंत्र हैं। उसके विरोध में यह भी कहा जाता है कि आस्टिन द्वारा वर्णित शब्दों के प्रयोग उसकी वैयक्तिक इच्छा को व्यक्त करते हैं, वास्तविक प्रयोगों को नहीं। यदि यह सत्य भी है तो इससे उसके मूल मन्तव्य का खण्डन नहीं होता, केवल उसके परिणामों पर प्रश्नचिह्न लगता है। कुछ आलोचनाएँ ___अन्त में साधारण भाषा दर्शन के विरोध में उठाई गई कुछ आपत्तियों का संक्षेप में उल्लेख कर हम इस विषय को यहीं विराम देंगे। एक आपत्ति यह की जाती है कि साधारण भाषा दार्शनिकों में कई महत्त्वपूर्ण मतभेद हैं। उदाहरण-आस्टिन ने तथ्य का प्रयोग तात्विक सत्ता के लिए उचित माना है किन्तु स्ट्रासन के अनुसार 'सत्य' का प्रयोग किसी तात्विक सत्ता के लिए नहीं होता। इसी प्रकार राइल के अनुसार ऐच्छिक का प्रयोग केवल उन सन्दर्भो में किया जाता है, जिनमें कुछ गड़बड़ी रहती 465 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org