________________ जा सकता है एवं हटाया जा सकता है। केवल याद रखिए, यह प्रथम शब्द है। किसी भी दार्शनिक अनुशीलन के पूर्व किसी पारिभाषिक शब्दावली की संरचना करते समय भी उनके स्रोत, साधारण भाषा का अध्ययन आवश्यक है। आस्टिन के अनुसार साधारण भाषा के विस्तृत एवं क्रमबद्ध अध्ययन का अपना अलग से भी महत्त्व है। इसी प्रकार वह मानता है कि हमारे व्यवहार के लिए साधारण भाषा में इतने अधिक सूक्ष्म अन्तर विद्यमान हैं कि कुर्सी पर बैठकर इनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। आस्टिन पर एक आक्षेप यह लगाया जाता है कि वह दर्शन में पारिभाषिक पदों की आलोचना करता है जबकि उसने स्वयं अनेक पारिभाषिक शब्दों की रचना की है किन्तु यहाँ पर यह समझ लेना आवश्यक है कि वह पारिभाषिक पदों का विरोधी नहीं है। वह केवल इतना मानता है कि अधिकतर पारिभाषिक पदों का प्रयोग जल्दबाजी में बिना किसी आवश्यकता के किया गया है। सेंस एण्ड सेंसिविलिया में आस्टिन ने 'सेंस डेटा' शब्दावली का इसी आधार पर विरोध किया है। यह भी कहा जाता है कि आस्टिन साधारण भाषा को पवित्र मानता है, यह गलत है। उनके अनुसार भाषा का सभी क्षेत्रों में संशोधन एवं परिवर्धन किया जा सकता है। अत्यन्त परिचित स्थितियों में भी साधारण भाषा अपर्याप्त हो सकती है, किन्तु किसी परिवर्तन के पूर्व संबंधित तथ्यों का पूर्व सर्वेक्षण आवश्यक है। किसी भी संशोधन के पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि किस चीज का संशोधन दिया जा रहा है। इसका परीक्षण आवश्यक है कि हमें कब क्या कहना चाहिए और इसलिए इसका क्यों और क्या अर्थ है।185 शब्द उपकरण है और कम से कम हमें साफ-सुथरे उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए। हमें जानना चाहिए कि हमारा अर्थ क्या है और क्या नहीं है और हमें भाषा के फंदों से सावधान रहना चाहिए। .. आस्टिन ने किसी निश्चित दार्शनिक विधि का प्रतिपादन नहीं किया है किन्तु उसकी अपनी विधि का एक मौटे तौर पर वर्णन किया जा सकता है। कोई-कोई दार्शनिक का दार्शनिक समूह पहले एक निश्चित क्षेत्र का चुनाव करता है तब इससे संबंधित पदों को एकत्रित किया जाता है। पहले सभी पदों का सोचकर उनकी सूची बनाई जाती है, फिर उनके पर्यायवाची एवं पर्यायवाचियों के पर्यायवाचियों को एकत्रित किया जाता है, फिर उन वाक्यों एवं वाक्यांशों को लिया जाता है, जिनमें इन शब्दों का प्रयोग होता है। दूसरी अवस्था में इन शब्दों के प्रयोगों पर आधारित कहानियाँ या वर्णन प्रस्तुत किये जाते हैं, जिसमें इनके अर्थसाम्य तथा वैषम्य का ज्ञान हो सके। इनके सन्दर्भ में तथ्यों की व्याख्या की जाती है। यहाँ यह दिखाना आवश्यक है कि ऊपर से जिन शब्दों का प्रयोग हो सकता है, वास्तव में उनका प्रयोग क्यों नहीं हो सकता। इस अवस्था में यह दिखाना भी आवश्यक है कि इस विषय में अन्य दार्शनिक तथा वैयाकरणों ने क्या कहा है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में भाग लेने वाले अन्वेषकों के सहमति की प्रामाणिकता की कसौटी है। इसीलिए आस्टिन दर्शन में सामूहिक प्रयास स्वीकार करता है। उसके अनुसार यह विधि आनुभविक एवं वैज्ञानिक है और इसके द्वारा निश्चित परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं और पारस्परिक दार्शनिक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। रचनात्मक दर्शन आस्टिन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त 'इल्लोक्युशनरी फोर्स' का है, जिसका उसके 'हाऊ टु इ थिंक्स विथ' वर्ड्स में विवेचन मिलता है। आस्टिन ने अदर माइंड्स लेख में-मैं जानता हूँ, वाक्य की व्याख्या करते हुए पर्पोमेटिव अरेंस का विवेचन मिलता है। इन वाक्यों को देखिए-मैं वादा करता हूँ। मैं इस जहाज का नाम विक्रान्त देता हूँ, मैं आप लोगों का अभिवादन करता हूँ। ये वाक्य किसी 462 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org