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________________ ___ 1. उत्पन्न मिश्रित-जिस भाषा में उत्पन्न भाव संख्या की पूर्ति के लिए अनुत्पन्न भावों से मिश्रित होते हैं, वह उत्पन्नमिश्रित भाषा है। ऐसा उपाध्यायजी ने कहा है। प्रज्ञापना के टीकाकारों ने उत्पन्न मिश्रिता भाषा का उदाहरण देते हुए कहा है कि पूर्णतया निश्चित संख्या का ज्ञान न होने पर कभी आनुमानिक रूप से उत्पत्ति संबंधी कथन करना उत्पन्न मिश्रित भाषा है। जैसे इस ग्राम में दसों बालकों का जन्म हुआ। वर्तमान सन्दर्भ में उसे हम आनुमानिक अंकों का प्रस्तुतीकरण कह सकते हैं। आनुमानिक संख्या संबंधी कथन न तो पूर्णतः असत्य ही कहे जा सकते हैं और न पूर्णतया सत्य ही। अतः उन्हें मिश्र भाषा की कोटि में मानना होगा। उदाहरण के लिए यदि हम कहें कि वाराणसी की जनसंख्या 10 लाख है तो हमारा यह कथन न तो असत्य ही कहा जा सकता है और न सत्य ही। सामान्यतः लगभग का प्रयोग करके जो कथन किये जाते हैं, वे इस कोटि में आते हैं। इसमें संख्या निश्चित न होकर आनुमानिक होती है। 2. विगत मिश्रित-उपाध्याय यशोविजय ने कहा कि जिस भाषा में विगत भाव अविगत भाव के साथ संख्यापूर्ति के लिए मिश्रित किये जाते हैं, वह भाषा विगतमिश्रित कही जाती है। टीकाकारों की दृष्टि में इसका अर्थ मरण संबंधी अनिश्चित संख्या का प्रतिपादन माना गया है, जैसे-आज नगर में दस लोगों की मृत्यु हो गई अथवा युद्ध में लाखों व्यक्ति मारे गये। विगत मिश्रित का एक अर्थ * भूतकालिक घटनाओं के अनुमानित आंकड़े प्रस्तुत करना भी हो सकता है।102 3. उत्पन्न विगत मिश्रित-जिस भाषा से वास्तव में उत्पन्न और विगत भाव एक साथ अधिक या न्यून कहे जाते हैं, उस भाषा को उत्पन्न विगत मिश्रित कहते हैं।10 जैसे भारत में हजारों बालक जन्म लेते हैं और मरते हैं। यहाँ भी पूर्णतया निश्चित संख्या के अभाव में इसे भी मिश्र भाषा की कोटि में माना जाएगा। 4-6. जीव मिश्रित-अजीव मिश्रित और जीव-अजीव मिश्रित-उपाध्याय यशोविजय ने इसे - परिभाषित करते हुए कहा है कि जीव और अजीव दोनों के समूह में अजीव को छोड़कर 'यह अनेक जीवों का समूह है', इत्यादि जो कहा जाता है, वह जीवमिश्रित भाषा है।' जीव और अजीव के समुदाय में न्यून या अधिक संख्या का जब स्पष्ट रूप में प्रयोग किया जाता है, तब यह भाषा जीवाजीवमिश्रित भाषा कही जाती है। - टीकाकारों ने जीवमिश्रित भाषा का उदाहरण देते हुए कहा है कि अनेक जीवित और अनेक मृत शुक्तियों के समूह को देखकर यह कहना कि 'यह जीवों का समुह है', जीवित शुक्तियों की अपेक्षा से यह भाषा सत्य है किन्तु मृत शुक्तियों की अपेक्षा से यह असत्य है। अतः इसे मिश्रभाषा कहा गया है। एक अन्य अर्थ भी हो सकता है कि जीवमिश्रित, अजीवमिश्रित और जीवाजीवमिश्रित-ये तीनों प्रकार की भाषाएँ वस्तुतः सजीव एवं निर्जीव दोनों प्रकार के लक्षणों से युक्त वस्तु के सन्दर्भ में एकान्तित रूप से जीवित या मृत होने का कथन करना है। उदाहरण के लिए हम शरीर को न जड़ कह सकते हैं, न चेतन, अपेक्षाभेद से वह जड़ भी हो सकता है, चेतन भी हो सकता है और उभय भी। उस अपेक्षाओं की अवहेलना करके उसे एकान्तिक रूप से जड़, चेतन या उभय कहा जायेगा तो वह मिश्र भाषा का ही उदाहरण होगा, क्योंकि उस भाषा को एकान्तिक रूप से सत्य या असत्य नहीं कहा जा सकता है। 7-8. अनन्तमिश्रित और परिमित मिश्रित-उपाध्याय यशोविजय ने इन दो को परिभाषित करते हुए कहा है-प्रत्येक काय पत्र आदि से युक्त कंद में सर्वत्र यह अनंत काय है-ऐसा प्रयोग अनंतमिश्रित भाषा है।107 445 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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