________________ भाषा शब्द के निक्षेप जैन दर्शन में शब्द (भाषा) के वाच्यार्थ का निर्धारण करने के लिए दो प्रमुख सिद्धान्त प्रस्तुत किये गए हैं-नय-सिद्धान्त और निक्षेप-सिद्धान्त। यहाँ हम भाषा पद के निक्षेप के बारे में चर्चा करेंगे। उपाध्याय यशोविजय ने निक्षेप के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा है कि जिससे प्रकरण (सन्दभ) आदि के अनुसार अप्रतिपाति अन्तर का निराकरण होकर शब्द के वाच्यार्थ का यथास्थान विनियोग होता है, ऐसी रचना विशेष को निक्षेप कहते हैं।25 लघीयस्त्रयी में भी निक्षेप की सार्थकता को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि निक्षेप के द्वारा अप्रस्तुत अर्थ का निषेध और प्रस्तुत अर्थ का निरूपण होता है। वस्तुतः शब्द का प्रयोग वक्ता ने किस अर्थ में किया है, इसका निर्धारण करना ही निक्षेप का कार्य है। हम राजा नामधारी व्यक्ति, नाटक में राजा का अभिनय करने वाले व्यक्ति, भूतपूर्व शासक और वर्तमान में राज्य के स्वामी-सभी को राजा कहते हैं। इसी प्रकार गाय नामक प्राणी को भी गाय कहते हैं और उसकी आकृति के बने हुए खिलौनों को भी गाय कहते हैं। अतः किस प्रसंग में शब्द किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया है, इसका निर्धारण करना आवश्यक है। निक्षेप हमें इस अर्थ-निर्धारण की प्रक्रिया को समझाता है। पं. सुखलाल संघवी अपने तत्त्वार्थसूत्र के विवेचन में लिखते हैं कि “समस्त व्यवहार या ज्ञान के लेन-देन का मुख्य साधन भाषा है। भाषा शब्दों से बनती है। एक ही शब्द प्रयोजन या प्रसंग के अनुसार अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता. है। प्रत्येक शब्द के कम से कम चार अर्थ मिलते हैं। वे ही चार अर्थ उस शब्द के अर्थ सामान्य के चार विभाग हैं। ये विभाग ही निक्षेप या न्यास कहलाते हैं। इनको जान लेने से वक्ता का तात्पर्य समझने में सरलता होती है। जैन आचार्यों ने चार प्रकार के निक्षेपों का उल्लेख किया है-1. नाम, 2. स्थापना, 3. द्रव्य और 4. भाव। इसी सन्दर्भ में उपाध्याय यशोविजय ने निक्षेप के भेद बताते हुए भाषा रहस्य में कहा है नामाई निक्खेवा चउरो चउरेहि एत्थ णायव्वा। दव्वे तिविहा गहणं तहं य निसिरणं पराधाओ।। अर्थात् यहाँ चतुर पुरुषों से भाषा के नामादि चार निक्षेप ज्ञातव्य हैं। भाषा के द्रव्य-निक्षेप के तीन भेद हैं-1. ग्रहण, 2. निसरणं, 3. पराघात। निक्षेप नाम स्थापना द्रव्य भाव / ग्रहण निसरणं पराघात कुशल पुरुषों को यहाँ निरूपणीय भाषा के चार निक्षेप ज्ञातव्य हैं-1. नाम भाषा, 2. स्थापना भाषा, 3. द्रव्य भाषा, 4. भाव भाषा। उनका संक्षिप्त में विवरण इस प्रकार है1. नाम भाषा-निक्षेप व्युत्पत्तिसिद्ध एवं प्राकृत अर्थ की अपेक्षा न रखने वाला जो अर्थ माता-पिता या अन्य व्यक्तियों 426 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org