SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्द प्रायोगिक वैस्त्रसिक भाषात्मक अभाषात्मक अभाषात्मक अक्षरात्मक अनक्षरात्मक तत वितत घन सुषिर सघर्ष संघर्ष प्रथमतः प्रयलजन्यता की दृष्टि से शब्दों के प्रायोगिक और वैस्त्रसिक दो विभाग भी किये हैं। प्रायोगिक शब्द वे हैं, जिनकी ध्वनि जीव के प्रयलों से उत्पन्न होती है, जबकि वैस्त्रसिक शब्द वे हैं, जिनकी ध्वनि जड़ वस्तुओं के पारस्परिक संघर्ष से उत्पन्न होती है। वैस्त्रसिक शब्द अनिवार्यतः अभाषात्मक होते हैं जबकि प्रायोगिक शब्द भाषात्मक एवं अभाषात्मक दोनों ही प्रकार के हो सकते हैं। भाषात्मक प्रायोगिक शब्द भी अक्षरात्मक एवं अनक्षरात्मक के भेद से दो प्रकार के माने गये हैं। इनमें जो ध्वनि, वर्णों या अक्षरों से युक्त होती है, वह अक्षरात्मक कही जाती है और जो ध्वनि वर्णों या अक्षरों से रहित होती है, वह अनक्षरात्मक कही जाती है। जड़ वस्तुओं से जो ध्वनि निःसृत की जाती है, वह अभाषात्मक प्रायोगिक शब्द है। यह अभाषात्मक प्रायोगिक शब्द पाँच प्रकार के माने गये हैं: 1. तत-चमड़े से लपेटे हुए वाद्यों से निःसृत शब्द तत कहे जाते हैं। . 2. वितत-सारंगी, वीणा आदि तार वाले वाद्यों से निःसृत होने वाले शब्द वितत कहे जाते हैं। 3. घन-झालर, घंटा आदि पर आघात करने से जो शब्द होता है, वह घन कहा जाता है। 4. सुषिर-फूंक कर बजाये जाने वाले शंख आदि के शब्द को सुषिर कहते हैं। 5. संघर्ष-दो वस्तुओं का घर्षण करके उनसे जो शब्द उत्पन्न किया जाता है, उसे संघर्ष कहते ___ हैं, जैसे-झांझ। यद्यपि स्वरूपता से ये सभी अभाषात्मक कहे गये हैं, किन्तु प्रायोगिक (प्रयलजन्य) होने के कारण इनसे होने वाली शब्द ध्वनियों को भाषात्मक रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। संगीत के स्वर इन्हीं वाद्यों से ही तो निकाले जाते हैं। अतः मेरी दृष्टि में इनमें भाषात्मक रूप में परिणत होने की क्षमता तो माननी ही होगी। धवला में कहा गया है कि नगारे आदि के शब्दों को उपचार से भाषात्मक कहा जाता है। अतः तत-वितत आदि वाद्यों से निकली शब्द-ध्वनि में भी किसी सीमा तक अक्षरात्मक ध्वनि हो सकती है। फिर भी वह स्पष्ट नहीं है, अतः उन्हें भाषात्मक शब्द-ध्वनि के अन्तरभाषित नहीं किया गया है। यहाँ यह स्मरण रखना होगा कि जब जीव के प्रयत्नों के द्वारा संघर्ष करके जो ध्वनि निकाली जाती है, वह प्रायोगिक होती है किन्तु स्वाभाविक रूप से ही जब पदार्थों के संघर्ष से ध्वनि निकलती है तो वह वैस्त्रसिक कही जाती है, जैसे-बादलों की गर्जना, मेघ का जोर से बरसना आदि से होने वाला शब्द। यह पूर्णतः अभाषात्मक है। 417 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy