________________ 384. 390. *392. 381. हरिभद्रसूरि के दार्शनिक चिंतन का वैशिष्ट्य, पृ. 406 382. योगशतक, गाथा 40-41 383. योगावतार बत्रीशी योगशतक, गाथा 53 385. वही, गाथा 59 386. वही, गाथा 60 387. वही, गाथा 67-71 388. योगशतक, गाथा 60-66 389. आठ दृष्टि की सज्झाय ध्यानयोग एवं कर्ममीमांसा, पृ. 8 391. योगावतार द्वात्रिंशिका, 26 योगदृष्टि समुच्चय, श्लोक-16 393. मित्राद्वात्रिंशिका, 1 394. योगदृष्टि समुच्चय, 22-23, 26-28 395. आठ दृष्टि की सज्झाय-मित्रा दृष्टि, गाथा 6 396. ___ वही, गाथा-7 397. योगदृष्टि समुच्यय, श्लोक 38-40 398. आठ दृष्टि की सज्झाय, तारादृष्टि-1 399. योगदृष्टि समुच्चय-41 400. आठ दृष्टि की सज्झाय, तारादृष्टि, पृ. 50 401. योगदृष्टि-समुच्चय, पृ. 209 आठ दृष्टि की सज्झाय, पृ. 66 403. वही, बलादृष्टि, पृ. 67 404. योगदृष्टि समुच्चय, 49 405. पातंजल योगसूत्र, पृ. 2/29 योगदृष्टि समुच्चय, गाथा 50 योगदृष्टि की सज्झाय, गाथा 3/1 408. योगदृष्टि समुच्चय, पृ. 49 409. आनन्दघन सज्झाय, गाथा 1, 2 समकित सड्सठ बोल की सज्झाय, ढाल 2/2 411. आठ दृष्टि की सज्झाय, ढाल 3/2 402. 406. 407. 410. 411 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org