________________ 261. 262. दशाश्रुतस्कंध, अ. 6 पातंजल योगदर्शन, 2/15 __ जैन धर्म-दर्शन और भारतीय दर्शन, पृ. 85 वही, पृ. 86 263. 264. 265. वही 266. 267. 268. 269. 270. 271. 272. 273. 274. A 275. '276.. पातंजल योगदर्शन टीका, 2/15, पृ. 174 मनुस्मृति, 6/92 सांख्यकारिका, 23 कम्मपयडी टीका श्रावक प्रज्ञप्ति, गाथा 98 कर्मग्रंथ, 5/19-21; कर्मप्रकृति, पृ. 30 कम्मपयडी टीका ललित विस्तरा टीका एवं पञ्चिका, पृ. 184-185 अभिधान राजेन्द्र कोश, 3/334-35 कम्मवियोहिमग्गं पडुच्च जीवठणा पन्नता। -समवायांग, 14/1 मिच्छादिठी सासायणे य तह सम्ममिच्छादिट्ठिय, अविरसम्मदिट्ठि विरसाविरए पमते य। तते य अप्पभता निपट्टिअनियट्ठिबायरे सुटुमे, उवसंतखीणमोहे होइ सजोगी अजोगी या।। -आवश्यकनियुक्ति, पृ. 149; समवायांग उद्धृत द्वितीय कर्मग्रंथ; मूलाचार पर्याप्ताधिकार, गाथा 1997-1998 सम्यक्त्व सप्ततिका टीका, गाथा 10 आठ दृष्टि की सज्जाय अध्यात्मसार ज्ञानसार, 23/1, लोकसंज्ञात्याग, त्यागाष्टक योगवशिष्ठ उत्पत्तिकरण, सर्ग 117/11-12 वही, सर्ग 118/5-6 पातंजल योगदर्शन भाष्य, पाद 1/1 योगविंशिका मराठी में भाषान्तरीय दीर्घनिकाय, पृ. 175 की टिप्पणी कम्मपयडी टीका 277. 278. 279. 280. 281. 282. 283. 284. 285. 286. 287. 407 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org