________________ नामकर्म की 103 प्रकृतियाँ प्रत्येक प्रकृति 8 भेद पिण्ड प्रकृति 75 भेद त्रसदशक 10 भेद स्थावरदशक 10 भेद 103 भेद प्रत्येक प्रकृति-8 1. अगुरुलघु, 2. निर्माण, 3. आताप, 4. उद्योत, 5. पराघात, 6. उपघात, 7. उच्छ्वास तथा 8. तीर्थकर आदि नामकर्म हैं, जो शारीरिक बनावट आदि से संबंधित हैं। पिण्ड प्रकृति-14, उत्तरभेद-75 गई जाइ तणु उवंगा बंधण-संघयणाणि संघयणा संठाण वण्ण गंधरस फास अणुपुव्विं विहगगई पिण्ड पयडिति चउदस।।55 उपाध्याय यशोविजय ने भी कम्मपयडी की टीका में पिण्ड प्रकृति का वर्णन करते हुए कहा हैगतिजातिशरीराऽगोपाऽगंबन्धन संऽथात संहननसंस्थानवर्ण गन्धरस स्पर्शानुपूर्वी विहायोगतपश्चतुर्दशः पिण्डमप्रकृतयः।।56 गति, जाति, शरीर, अंगोपांग, बंधन, संघात, संघवण, संस्थान, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, आनुपूर्ति, विहायोगति-इन चौदह पिण्ड प्रकृतियों के उत्तरभेद 75 हैं 4 गति-1. देव, 2. नारक, 3. तिर्यंच, 4. मनुष्य। 5 जातियाँ-1. एकेन्द्रिय, 2. बेइन्द्रिय, 3. तेइन्द्रिय, 4. चउरिन्द्रिय और 5. पंचेन्द्रिय। . 5 शरीर-1. औदारिक, 2. वैक्रिय, 3. आहारक, 4. तैजस, 5. कार्मण। 3 उपांग-1. औदारिक अंगोपांग, 2. वैक्रिय अंगोपांग, 3. आहारक अंगोपांग। 15 बंधन-1. औदारिक-औदारिक, 2. औदारिक तैजस, 3. औदारिक कार्मण, 4. औदारिक तैजस कार्मण, 5. वैक्रिय वैक्रिय, 6. वैक्रिय तैजस, 7. वैक्रिय कार्मण, 8. वैक्रिय तैजस कार्मण, 9. आहारक आहारक, 10. आहारक तैजस, 11. आहारक कार्मण, 12. आहारक तैजस कार्मण, 13. तैजस तैजस, 14. तैजस कार्मण, 15. कार्मण कार्मण। 5 संघातन-1. औदारिक, 2. वैक्रिय, 3. आहारक, 4. तैजस, 5. कार्मण। . 6 संघयण-1. व्रजऋषभनाराच, 2. ऋषभनाराच, 3. अर्धनाराच, 4. नाराच, 5. कीलिका, 6. छेवट्ठ। 6 संस्थान-1. समचतुःरस्त्र, 2. न्यग्रोधपरिमंडल, 3. सादि, 4. कुल्ज, 5. वामन, 6. हुंडक। 5 वर्ण-1. कृष्ण, 2. नील, 3. लोहित, 4. हारिद्र, 5. सित। 2 गंध-1. सुरभिगंध, 2. दुरभिगंध। 5 रस-1. तिक्त, 2. कटु, 3. कषाय, 4. आम्ल, 5. मधुर। 8 स्पर्श-1. गुरुलघु, 2. मृदुकर्कश, 3. शीत उष्ण, 4. स्निग्ध रुक्ष। 4 आनुपूर्वी-1. देवानुपूर्वी, 2. मनुष्यानुपूर्वी, 3. तिर्यंचानुपूर्वी, 4. नरकानुपूर्वी। 2 विहायोगति-1. शुभ विहायोगति, 2. अशुभ विहायोगति। 75 346 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org