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________________ बहोत बहोत बधाई भारतीय संस्कृति पुरातन काल से अद्वितीय रही है। श्रमण भगवान महावीर के ग्यारह गणधरों ने प्रभु की अमृत वाणी को अपनी प्रतिभा के द्वारा गुंथकर बारह अंगसूत्रों का निर्माण किया / उनके समकालीन श्रमणों ने एवं उनके पश्चात् वर्ती श्रमणों ने द्वादशांगी के आधार पर जिस ग्रंथ साहित्य का सृजन किया था वह पूर्ण रूपेण आज प्राप्त नहीं है। जैन वांगमय की जिष्ण गिरा में गुथने वालों में उपाध्याय यशोविजयजी का अग्रिम स्थान है / जिनका साहित्य आज प्रमाणभूत माना जाता है / ___ उपाध्यायजी की विमलयश रश्मियां विद्वत मानस को चिरकाल से आलोकित कर रही है। उनके ओर एवं ज्योतिर्मय मस्तिष्क में जो विचार क्रांति एवं ज्ञान समुद्र पैदा हुआ था उससे आज कौन अपरिचित है। ऐसे यशस्वी व्यक्तित्व के धनी उपाध्याय यशोविजयजी के दार्शनिक चिन्तन के वैशिष्ट्य को अपना शोध विषय बनाकर साध्वीजी ने जिस तन्मयता एवं गहन अध्ययन सहित पूर्ण किया है। उसके लिए शत शत बधाई एवं साधुवाद / दर्शन सरीखे दुरुह विषय की गहराई में उतरना, समझना तथा उसका विश्लेषण विवेचन करना / खासकर श्री यशोविजयजी जैसे प्रखर मनीषि के चिन्तन की थाह पाना बहुत कठिन एवं कण्ट साध्य है। मगर साध्वीजी श्री अमृतरसाश्रीजी ने अग्भूत निष्ठा संकल्प शक्ति एवं एकाग्रता से उसमें सफलता प्राप्त की / कई कंटको पर अनवरत चलते हुए संयम सदाचार एवं अहिंसा पथ की पथ गामिनी साध्वी अमृतरसाश्रीजी ने उपाध्याय यशोविजयजी के दार्शनिक चिन्तन का अनुशीलन तपस्या समझकर किया / आपका परम तारक परमात्मा, दादा गुरुदेव, वर्तमानाचार्य एवं अपनी गुरुमैया के प्रति उत्कृष्ट समर्पण भाव था / अतः उनकी सबकी अनराधार कृपा दृष्टि से ही आप ऐसे कठनि कार्य को सुलभता से सरल भाषा में जन सन्मुख प्रेषित कर सके / जैसी आपकी लेखनी है वैसी ही आपकी वाणी भी है / इसबात की अनुभूति हमें अहमदाबाद में आपकी मौखिक परीक्षा के समय हुई थी / उस पल को शब्द में बयान करना मेरा सामर्थ्य नहीं है। निसन्देह यह ग्रंथ दर्शन के अध्येताओं को कदम कदम पर प्रकाश पुंज बनकर राह दिखायेगा / इस ग्रंथ को पढकर उपाध्यायजी के दार्शनिक चिंतन की थाह पाना बहुत संभव होगा। आशा करते हैं कि साध्वीजी अपने अध्ययन एवं लेखन को निरंतर उच्च आयाम देती रहेगी। क्योंकि हमे विदित है - सियाणा चातुर्मास दरम्यान शरीर की अस्वस्थता के बावजुद आपश्री ने अपनी लेखनी को विराम नहीं दिया था / वह अप्रमत्तता की निशानी है। अंत में एक सफल एवं सार्थक शोध प्रबन्ध के लिए ढेर सारी शुभकामना एवं बधाई के साथ / जयन्तीलाल डी. गांधी मद्रास (सियाणा) 16 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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