________________ -तत्त्वार्थ सूत्र, 5/32 Jain Theories of Reality and Knowledge, p. 98 आप्तमीमांसा, श्लोक 17, 18 अर्पितानर्पित सिद्धेः। आप्तमीमांसा, श्लोक-22 आप्तमीमांसा, श्लोक-15 जैन न्याय का विकास, पृ. 70 न्यायालोक, पृ. 125 ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्यम्, 2/2/33, पृ. 510 वही no . 100. 101. 102. 103. 104.. 105. 106. 107. 108. तत्त्वसंग्रह, श्लोक 1779 (टीका) प्रमेयकमलमार्तण्ड, पृ. 4 न्यायावतार वार्तिकवृत्ति, पृ. 87 न्यायावतार वार्तिकवृत्ति, कारिका-35 मीमांसादर्शनम्, पृ. 85 प्रमेयकमलमार्तण्ड, पृ. 4 The Jain Philosophy of Non-absolutism, p. 6 सन्मतितर्कप्रकरण, 3/70 अनेकान्तवाद : सिद्धान्त और व्यवहार स्याद्वाद और सप्तभंगी एवं चिन्तन अनेकान्त है तीसरा नेत्र, पृ. 46 स्याद्वाद और सप्तभंगी : एक चिन्तन सिद्धसेन शब्दानुशासन व्याकरण, 1/1/2 अयोगव्यवच्छेदक द्वात्रिंशिका, श्लोक-30 वही, श्लोक-28 बृहत्स्वयम्भूस्तोत्रावली, श्लोक 65 न्यायखण्डनस्वाद्य, श्लोक 42 अनेकान्तव्यवस्था प्रकरण प्रशस्ति, श्लोक-13 द्वात्रिंशद द्वात्रिंशिका, श्लोक-15 स्याद्वाद की सर्वोत्कृष्टता, पृ. 39 तत्त्वार्थ सूत्र, 5/29-31 स्याद्वाद और सप्तभंगी का चिंतन 109. 110. 111. 112. 113. 114. 115. 116. 117. 118. 119. 314 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org