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________________ जिन शासन में प्रभु महावीर के शासन में उनकी कृपा से, विश्व पूज्य दादा गुरुदेव श्रीमद विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी की दिव्य कृपा से एवं वर्तमानाचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेनसूरीश्वरजी के असीम आशीर्वाद से उनकी आज्ञानुवर्तिनी साध्वी श्री भुवनप्रभाश्रीजी के मंगलमय कृपादृष्टि से उनकी शिष्या ज्ञानपिपासु साध्वी श्री अमृतरसाश्रीजी को जैन विश्व भारती संस्था लाडनुं द्वारा उपाध्याय यशोविजयजी के दार्शनिक चिंतन के वैशिष्ट्य पर Ph.D. डिग्री से अहमदाबाद में सम्मानित किया गया / यह सुनकर हमें अत्यंत आनंद की अनुभूति हुई। .. वैसे भी साध्वीजी की ज्ञान के प्रति रुचि, लग्न, जिज्ञासा कितनी थी उसका अनुभव तो हमें तनकु चातुर्मास के दौरान हो गया था / सुबह से शाम तक ज्ञान, ज्ञान और ज्ञान सीखना और सीखाना वही उनका ध्येय था / साथ ही उसी चातुर्मास के समय उन्होंने M.A. Final की परीक्षा दी थी / उसमें वे University first आयी थी वो भी हमारे संघ के लिए गौरव की बात थी / उसके बाद ही Ph.D. के लिए फार्म भरा और आज पूर्णाहुति भी हो गयी / जो सकल संघ के लिए बडी खुशी की बात है / आपने इतना गहन कार्य को सरल भाषा में व्यक्त करके जैन शासन की, गुरु गच्छ की, हमारे तनकु संघ की एवं आपके परिवार की शोभा बढाई है। आप ऐसे ही अपनी लेखनी को विराम न देते हुए अनवरत आगे बढे / प्रगति उन्नति करते रहे एवं जैनशासन में कुल दीपिका नहीं वरन् विश्व दीपिका बने / शासन को वफादार रहे और शासन की प्रभावना का कार्य करते हुए एवं ज्ञान के क्षेत्र में भी आगे बढकर संघ व समाज. का उद्धार करें इसी मंगलकामना के साथ / सकल जैन तनकु संघ विमलजी मुथा शुभ अभिलाषा भगवान महावीर के शासन में, दादा गुरुदेव की असीम कृपादृष्टि एवं वर्तमानाचार्य राष्ट्रसंत श्रीमद् विजय जयंतसेनसूरीश्वरजी के आशीर्वाद से उनकी आज्ञानुवर्तीनी साध्वी श्री भुवनप्रभाश्रीजी सुशिष्या ज्ञानपिपासु सा. अमृतरसाश्रीजी को Ph.D. की डीग्री से सम्मानित किया गया है / इस शुभ समाचार से मन अत्यधिक प्रसन्न हुआ / देवी सरस्वती की साध्वीजी पर महत्ति कृपा है। आपने ठाणा, गच्छ, जिनशासन एवं परिवार को गौरवान्वित किया है। आपका संयम जीवन जिनशासन की अनुपम सेवा में सदैव समर्पित हो / आप दिर्घायु हो, मोक्षगामी बनो ऐसी प्रभु महावीर से प्रार्थना करते हैं / आपने पूज्य गुरुदेवश्री जयंतसेनसूरीश्वरजी की असीम कृपादृष्टि एवं आपकी गुरुमैया साध्वी श्री भुवनप्रभाश्रीजी की वात्सल्यदृष्टि एवं दिव्य आशीर्वाद से ही आप यशोविजयजी के दार्शनिक चिंतन का वैशिष्ट्य जैसे गहन विषय को चुनकर उनमें गोते लगाकर अमूल्य निधि रूप दार्शनिकता के सारांश रुप नवनीत को संग्रहित करके यह शोधग्रंथ तैयार किया है वो अनुमोदनीय कार्य है। 12 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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