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________________ है और वही जैन-दर्शन है। वह किसी एक नय के खण्डन या मण्डन में विश्वास नहीं करता, किन्तु सब नयों का समुदित कर सत्य की अखण्डता प्रदर्शित करता है। उनके बाद तीसरा प्रमाण व्यवस्था के क्षेत्र में विकास हुआ, उनका निरूपण आगे के मुद्दे में होगा, वो यथार्थ हैं। न्याय की परिभाषा वस्तु का अस्तित्व स्वतः सिद्ध होता है। ज्ञाता उसे जाने या न जाने, इससे उसके अस्तित्व में कोई अन्तर नहीं आता। वह ज्ञाता के द्वारा जानी जाती है तब प्रमेय बन जाती है और ज्ञाता जिससे जानता है, वह ज्ञान युक्ति सम्यक् या निर्णायक होता है तो प्रमाण बन जाता है। इसी आधार पर न्यायशास्त्र की परिभाषा निर्धारित की गई। न्याय भाष्यकार वात्स्यायन के अनुसार प्रमाण के द्वारा अर्थ का परीक्षण 'न्याय' कहलाता है। नीयते-याथात्मने परिच्छिधते वस्तुतत्वं अनने इति न्यायः। यह व्युत्पत्ति उपाध्याय यशोविजय ने न्यायलोक में दिखाया है-न्याय शब्द युक्ति, तर्क इत्यादि अर्थ में प्रसिद्ध है। गौतमीय दर्शनानुसार पंचावयवी अनुमान प्रयोग को 'न्याय' कहा है। पदार्थ सिद्धि के लिए जगह-जगह पंचावयवी अनुमान प्रयोग को प्रधानता आश्रयदाता के रूप में गौतमीय सम्प्रदाय 'न्याय दर्शन' शब्द से प्रसिद्ध हुआ है। आन्वीक्षिकी विद्या अर्थ में भी न्याय शब्द प्रचलित है। न्याय शब्द का अर्थ उदाहरण अथवा घटना भी होता है, जैसे-'दर्शाणभद्र न्याय' 105 इस अर्थ में न्याय शब्द का प्रयोग न्यायोकितकोश लौकिकन्यायांजलि आदि ग्रंथ के नाम का भी उल्लेख है। व्यवहार में सामान्य लोक में भी न्याय पक्षपातरहित अथवा तटस्थता के प्रामाणिकता इत्यादि प्रसिद्ध हैं। न्यायाधीश के दिये हुए फैसले को भी न्याय कहा जाता है। व्याकरणशास्त्र संबंधी कई स्वीकृत मर्यादाएँ, जिनका सूत्रों में उल्लेख न हो, फिर भी दूसरी रीति से दिखाया हो, जैसे अपवादसूत्र उत्सगवादक है, आदि को भी न्याय कहा जाता है। न्याय शब्द का एक अर्थ नीति भी होता है।106 ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि अपनी जाति के लिए निहित व्यापार को भी न्याय कहते हैं। विशुद्ध व्यवहार को भी न्याय कहा जाता है। धर्मबिन्दुवृत्ति में-'न्यायेन-शुद्धमान तुलोचित कला व्यवहारादिरूपेण' 108 व्याख्या की गई है। उपाध्याय यशोविजय ने न्यायालोक में न्याय शब्द का एक अर्थ प्रकार, पद्धति भी होता है। नियम के अर्थ में, भी न्याय शब्द का उपयोग होता है।100 दार्शनिक जगत् में न्याय शब्द उस दर्शन समुदाय में रूढ़ है। मुख्यतया गौतमीयन्याय, बौद्धन्याय, जैन न्याय-इस तरह क्रमशः अक्षपात सम्प्रदाय (नैयायिकदर्शन) बौद्धमत एवं जैनदर्शन के लिए व्यवहृत हुआ है। योगानुयोग प्रस्तुत तीनों दर्शनों में भी गौतम नाम के अलग-अलग महनीय महर्षि हो गये। तीनों में क्रमशः गौतम महर्षि, गौतम बुद्ध एवं इन्द्रभूति गौतमस्वामी-इस नाम से प्रसिद्ध हैं। प्रस्तुत तीनों विभूतियां अलग-अलग हैं। 224 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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