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________________ श्री यशोविजयजी की यशगाथा में तलस्पर्शी अध्ययन एवं शोध कर, उनके व्यक्ति और कृतित्व, उनका अध्यात्मवाद, प्रमाण मीमांसा, तत्त्वमीमांसा, ज्ञानमीमांसा, योगमीमांसा, अनेकान्तवाद व नयमीमांसा श्री यशोविजयजी की रचनाओं रहस्यवाद, उनका भाषादर्शन, उपाध्यायजी के दर्शन में अन्य दर्शनों की अवधारणा-आदि विषयों पर मन्थन-मनन कर नवनीत प्रस्तुत किया / जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय लाडनू ने-विदुषी साध्वीजी श्री अमृतरसाजी म.सा. द्वारा मन्थित इस नवनीत - "महोपाध्याय श्री यशोविजय म.सा. के दार्शनिक चिन्तन का वैशिष्ट्य" नामक शोधग्रन्थ पर पी.एच.डी. की उपाधि प्रदान की है। यह हम सब के लिये, गुरु गच्छ के लिये, पूज्य आचार्य भगवन्त के लिये गौरव-गरिमा का विषय है। इस सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि के लिये हम पूज्या श्री का अभिनंदन करते हैं तथा मंगल कामना करते हैं कि आपकी लेखनी एवं कर्मठता, इसी प्रकार सतत प्रवाहमान बनी रहे, एवं अपनी पावन प्रज्ञा परक प्रसाति से आप गुरुगच्छ एवं जिनशासन की प्रभावना करें / आपश्री का यह शोधग्रन्थ जिज्ञासुओं के लिए, साधकों के लिये, शोधार्थियों के लिये अध्ययनार्थियों के लिये उपयोगी सिद्ध हो - इसी मंगल कामना के साथ - डॉ. श्रीमती कोकिला भारतीय राष्ट्रीय अध्यक्ष, अ.भ.रा.जै. महिला परिषद खाचरोद, म.प्र. 18-9-2013 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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