________________ मंगल-कामना "यदा यदा हि धर्मस्य, ग्लानिभवति भारतः, अभ्युत्थानम् यः धर्मस्य तदात्मानाम् स्वजाम्यहम् / " भारतीय संस्कृति धर्मप्रधान संस्कृति है। अतः जब भारत में धर्म की हानि हुई, तब तब धर्म के पुनरुत्थान के लिए भव्यात्माओं का सन्तों का धर्मात्माओं का, मनीषियों का, महामानवों का अवतरण हुआ, - जिन्होंने अपनी असाधारण प्रतिभा से विपुल साहित्य सर्जन से, विशिष्ट शासन प्रभावना से जन सामान्य का मार्ग प्रशस्त किया / व्यष्टि की सीमा को लांघकर - उनकी विचारधारा, उनके कार्य, उनकी जीवनशैली समष्टिमय बनी तथा उन्होंने 'सर्व जन हिताय' - सर्वजन सुखाय - अपने जीवन को समर्पित कर संस्कृति की सुरक्षा का भारोद्वेलन किया / उनके कार्य-कलाप, मानसिक व्यापार, आचार-विचार और व्यवहार तथा बौद्धिक चिन्तन की सहस्त्रास्त्ररश्मियाँ, जन के मानस का प्रेरणादीप बनी तथा उनमें नव जीवन का उजाला प्रस्फुरित कर सुपुत्र सद्भावनाओं के नव-जागरण का आदर्श बनी / .. शासन नायक, विश्व वत्सल - प्रभु महावीर के धर्मशासन की परम्परा में भी ऐसे अनेक धर्म प्रभावक, शासन प्रभावक, साहित्य प्रभावक - आचार्य - भगवन्त एवं श्रमण भगवन्त हुए - जिनका जीवन महान था, व्यक्तित्व एवं कृतित्व महान था तथा जीवन का प्रत्येक आयाम देदीप्यमान था / श्री भद्रबाहु स्वामी, श्री सिद्धसेन दिवाकर, श्री हरिभद्रसूरि, श्री हेमचन्द्र सूरि, आचार्य कुन्दकुन्द, श्री जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण - जैसे समर्थ आचार्यों की पंक्ति में, न्यायाचार्य, न्याय-विशारद, तार्किक शिरोमणि कलिकाल केवली जैसे बिरुदों के धारक, युगप्रवर्तक उपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है / महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी जैन शासन के अन्तिम परम प्रभावक महापुरुष थे, जिनके द्वारा कथित व लिखित शब्द-प्रमाण स्वरुप माना जाता है। जैन धर्म व दर्शन के पारंगत विद्वान, पूज्य श्री यशोविजयजी, अन्य धर्मों व दर्शनों के भी तलस्पर्शी ज्ञाता थे, इसीलिए उनके साहित्य में व्यापक विद्वता, उदारता, व्यापक दृष्टि एवं समन्वयात्मक्ता का सुभग दर्शन होता है। स्व संप्रदाय में अथवा पर संप्रदाय में जब जब व जहां जहां उन्होंने तर्कहीनता व सिद्धान्तों में विसंवाद देखा - निर्भयता से आलोचना कर, समीक्षा एवं विश्लेषण कर विलक्षण प्रतिभा का सुन्दरतम परिचय दिया / ऐसे साहित्य के आदित्य अध्यात्म के मेरुशिखर महान ज्ञानी, निर्मल प्रज्ञा व आंतरिक वैभव के कुबेर , "महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी म.सा. के दार्शनिक चिन्तन के वैशिष्ट्य" को अपना शोधविषय बनाकर, पूज्या साध्वीजी श्री अमृतरसाश्रीजी म.सा., जो राष्ट्रसंत, लोकमंगल के क्षीरसागर, दीक्षा दानेश्वर, श्रीमद् विजय जयन्तसेनसूरीश्वरजी आचार्य भगत की आज्ञानुयायी है - ने जिनशासन की महती प्रभावना की है। पूज्या श्री अमृतरसाश्रीजी ने गुजरात के अहमदाबाद शहर में श्री हरिभाई सेठ एवं जासुदबेन के परिवार में जन्म लेकर - मात्र उन्नीस वर्ष की अल्पायु में दीक्षा लेकर - निरन्तर शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति की / साध्वोचित कठोर दैनिक क्रियाएं, विहार, लोच आदि के बावजूद-विपुल ज्ञानार्जन की चाह व गुरु कृपा ने निरन्तर ज्ञान को विस्तार दिया / महोपाध्याय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org