________________ डॉ अरविन्द विक्रम सिंह सह आचार्य दर्शनशास्त्रा विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर-30200 निवासः- L-8E राजस्थान विश्वविद्यालय परिसर, जयपुर-302004, मोबाईल नं.-09460389042 साध्वी अमृतरसाश्री जी द्वारा लिखित “महोपाध्याय यशोविजय के दार्शनिक चिंतन का वैशिष्ट्य” नामक पुस्तक को पढ़ने का अवसर मिला। सचमुच यह पुस्तक अपने आप में अद्वितीय है। साध्वी जी ने यशोविजय जी की दार्शनिक विचारों को बड़े ही सरल एवं बौधगम्य रूप में प्रस्तुत किया है। जिसकों पढ़कर एक सामान्य व्यक्ति भी महोपाध्याय जी के दर्शन को समझ सकता है। मूलरूप से महोपाध्याय जी की शैली कठिन एवं दुरूह है जिसकों सामान्य जनमानस नहीं समझ सकता। महोपाध्याय ने जैन साहित्य में जिस शैली का प्रयोग किया है, वह नव्य न्याय की शैली से मिलती है। जो व्यक्ति नव्य न्याय की शैली से अपरिचित है उसे विजय जी के ग्रन्थों को समझने में कठिनाई होगी। उदाहरण के तौर पर- प्रमा, प्रमेय, प्रमाण, नय, मंगल, मुक्ति, आत्मा एवं योग आदि अनेक विषयों पर नव्य न्याय की शैली का प्रयोग किया है। उसी प्रकार से कर्म तत्त्व, आचार, चरित्र आदि पर उन्होंने आगमिक शैली का प्रयोग किया है। उनकी शैली खण्डनात्मक, प्रतिपादनात्मक एवं समन्वयात्मक है। वे विषयों की पूरी गहराई तक पहुंचते हैं। उनकी कृतियाँ किसी अन्य के ग्रन्थ की व्याख्या न होकर एक मूल, टिका या दोनों रूप से स्वतंत्र है। ये श्वेताम्बर जैन होते हुए भी अनेक सम्प्रदायो के शास्त्रों को अपने दर्शन में उचित मान देते हैं। ऐसे महान चिंतक, दार्शनिक एवं जैन आचार्य के दार्शनिक विचारों को प्रस्तुत कर साध्वी जी ने महान कार्य किया है। मेरी परमपिता परमेश्वर से कामना है कि यह पुस्तक शोध छात्र एवं दर्शन के जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी सिद्ध हो और साथ ही साथ साध्वी जी को हमारी शुभ कामनाए। भवनिष्ठ डॉ अरविन्द विक्रम सिंह an Interational For Personal Private Use Only