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________________ विनम्र Vवन्दनांजलि महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज ! आपने ग्रन्थों के न्यायालय में एक सक्षम, कुशल धाराशास्त्री की अदा से कुमत के सिद्धांतो को रद करने में पीछेकदम नहीं उठाये थे। मुझे लगता है कि... चिंता की ज्वालाओं मा शारदा के अश्रुप्रवाह की भीषण जलधारा से शांत हो गई होगी तब आप ग्रंथागारो की रेशमी पोथीओं में डूब गये होंगे।जो भी हो - पर, आपको मृत कौन कहेगा ? अरे, एक बात पूछती हुँ ? जिनकी गंधमात्र सेकुवादीओंमूर्छित हो जातेथेऐसे वेधक ग्रन्थ क्या आप क्लोरोफोर्म रुपी शाही से लिखाथा ? और किसको गाते गाते आंखो में से भक्तिभीनी अश्रुधारा बहती है ।ऐसे संवेदक स्तवनाओं की रचना आप टीयरगेसकी शाही से तो नहीं लिखीथीन ? _____आपके ग्रन्थों ने प्रत्येक शब्द में से नीतरते शासनराग के चोलमजीठरंग से रंगाकर ।आपनी स्तवनाओं से बह रहे मधुर परमात्माप्रणय के रस का पान करके, एवं आप प्राप्त करेल मा सरस्वती के अपार अनुग्रह को अभिनंदी ने...आपसी बेजोडबुद्धि प्रतिभा के एवं स्व-पर मर्मज्ञता के दस्तावेजी पुरावा जैसे अद्वितिय ग्रन्थरत्नों को विनम्र वंदनांजलि। आपके नाम के आगे स्वर्गस्थ विशेषण लगता है। फिर भी हजारो युवानों की धबकतीधर्मचेतना रुप आज भी आपजीवंत हो। सेंकडों श्रमणो की सुविशुद्ध संयमचर्या एवं सुरम्य अद्भूत शासनसेवा की सौरभ रुप आज भी आप महेकते हो। दिव्यदर्शन में सेनीतरतीसंवेग एवं विराग की अमृतधारारुप आज भी आ आपके शताधिक प्रकाशनों में व्यक्तिरूप आप आज भी उपस्थित है। सकल संघ के हीर, खमीर एवं कौशल्य के प्राणाघार रूप आज भी आपका अस्तित्व का अनुभव होता है। (संपूर्ण वांग्मय के साररुप प्रस्तुत ग्रंथ न्यायाचार्य के चरणों में स्मरणांजलि सह समर्पित करते हुए धन्यता का अनुभव कर रही हूँ।) आपकी चेतनामय उर्जादायी मूक प्रेरणा से सर्जित यह कृति आपके पुनित पाणिपद्म में साश्रु नयन एवं 1 गदगद हृदय से समर्पित कर रही हुँ। - सा. अमृतरसा LaHELPrinternational For Personal & Private Use Only S welinelibranARACT
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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