________________ 120. श्रेयः सर्वनयज्ञानां विपुलं धर्मवादतः। शुष्कवादाद् विवादाच्च परेणं तु विपर्ययः / / -ज्ञानसार, 32/5 121. निश्चये व्यवहार च त्यक्त्वा ज्ञाने च कर्मणिं। एक पाक्षिक विश्लेष्मारुठाः शुद्ध भूमिकाम्।।7।। अमूठ लक्ष्याः सर्वत्र पक्षपात विवर्जिताः जयन्ति परमानन्द मयाः सर्वनयाश्रयाः। -ज्ञानसार, उपाध्याय यशोविजय, 32/7.8 122. प्रकशितं जनानां येतं, सर्वनयाश्रितम्। चित्त परिणतं चेदं यषां तेभ्यो नमोनमः / / -ज्ञानसार, 32/6 123. यशोदोहन, मुनि यशोविजय, पृ. 144 124. नयोपदेश, उपाध्याय यशोविजय, श्लोंक-48 125. नयोपदेश, उपाध्याय यशोविजय, श्लोक-105 126. अस्मादृशं प्रमादग्रस्तानां चरण करण हीनानाम्। अब्धों पोंत इवेह प्रवचनराग! शुभोपायः -न्यायलोक, उपाध्याय यशेविजय, प्रशस्ति, श्लोक-6, पृ. 338 127. न्यायालोक उपाध्याय यशोविजय, प्रथम प्रकाश, द्वितीय वाद, पृ. 49-84 128. वही, पृ. 51-64 129. वही, तृतीय वाद, पृ. 85-125 130. वही, पृ. 126-146 131. वही, द्वितीय प्रकाश, प्रथम वाद, पृ. 203-212 132. वही, द्वितीय वाद, पृ. 213-236 133. वही, तृतीय वाद, पृ. 237-256 134. वही, चतुर्थ वाद, पृ. 313-318 135. वही, पृ. 319 136. वही, पृ. 327, 329 137. प्रतिमाशतक, उपाध्याय यशोविजय, श्लोक-1-69, पृ. 1-433 138. वही, श्लोक 70-78, पृ. 434-455 139. वही, श्लोक 80-95, पृ. 458-529 140. वही, पृ. 16 141. तत्वचिंतामणि, उपाध्याय गंगेश, प्रत्यक्षखण्ड, पृ. 756 142. उपदेश रहस्य, उपाध्याय यशोविजय, गा. 100-101, पृ. 215-217 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org