________________ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oot 50000000000000000 do00000000000000000000000000 00000000000000000 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 मूल: जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पड़ वारिणा। एवं अलि कामेहि, तं वयं बूम माहणं||७|| छायाः यथा पद्म जले जातम्, नोपलिप्यते वारिणा। एवमलिप्तं कामैः, तं वयम् ब्रूमो ब्राह्मणम्।।१७।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (जहा) जैसे (पोम) कमल (जले) जल में (जाय) उत्पन्न होता है तो भी (वारिणा) जल से (नोवलिप्पइ) वह लिप्त नहीं होता है (एवं) ऐसे ही जो (कामेहि) काम भोगों से (अलित्तं) अलिप्त है (तं) उसको (वयं) हम (माहणं) ब्राह्मण कहते हैं। भावार्थ : हे गौतम! जैसे कमल जल में उत्पन्न होता है, पर जल से सदा अलिप्त रहता है, इसी तरह कामभोगों से उत्पन्न होने पर भी विषय वासना सेवन से जो सदा दूर रहता है, वह किसी भी जाति व कौम का क्यों न हो, हम उसी को ब्राह्मण कहते हैं। मूल : न वि मुंडिएण समणो, न ओंकारेण बंभणो। ___नमुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण न तावसो||१८|| छाया: नाऽपि मुण्डितेन श्रमणा, न ओंकारेण ब्राह्मणः / न मुनि अरण्यवासेन, कुशचीरेण न तापसः / / 18 / / 4 अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (मुंडिएण) मुंडन व लोचन करने से (समणो) श्रमण (न) नहीं होता है और (ओंकारेण) ओंकार शब्द मात्र जप लेने से (बंभणो) कोई ब्राह्मण (वि) भी (न) नहीं हो सकता है। इसी तरह (रण्णवासेणं) अटवी में रहने से (मुणी) मुनि (न) नहीं होता है। (कुसचीरेण) कुशा (घांस) के वस्त्र पहनने से (तावसो) तपस्वी (न) नहीं होता है। _भावार्थ : हे गौतम! केवल सिर मुंडाने से या लोचन मात्र करने से ही.कोई साधु नहीं बन जाता है और न ओंकार शब्द मात्र के रटने से ही कोई ब्राह्मण हो सकता है। इसी तरह केवल सघन अटवी में निवास कर लेने से ही कोई मुनि नहीं हो सकता और न केवल घांस का विशेष कपड़ा पहन लेने से तपस्वी बन सकता है। मूल: समयाए समणो होई, बंभचेरेण बंभणो। नाणेण य मुणी होइ, वेणं होइ तावसो||१९|| छाया: समतया श्रमणो भवति, ब्रह्मचर्येण ब्राह्मणः / ज्ञानेन च मुनिर्भवति, तपसा भवति तापसः / / 16 / / 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 30000000000000 निर्ग्रन्थ प्रवचन/89 dooooo000000000000 Jal Education International Sboo00000000000000b For Personal & Private Use Only www www.jane brary.org