________________ 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 10000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 ___ अध्याय सात - धर्म निरुपण ॥श्रीभगवानुवाच| मूलः महत्वए पंच अणुव्वए य, तहेव पंचासवसंवरे या _विरतिंइहस्सामणियंमिपन्न, लवावसक्कीसमणेतिबेमि||१|| छायाः महाव्रतानि पञ्चाणुव्रतानि च, तथैव पञ्चाश्रवान् सवरंच। विरतिमिह श्रामण्ये प्राज्ञः, लवापशांकीः श्रमण इति वबीमि।।१।। 7 अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (इह) इस जिनशासन में (रसामणियंमि) चारित्र पालन करने में (पन्ने) बुद्धिमान् और (लवावसक्की) कर्म जोड़ने में समर्थ ऐसे (समणे) साधु (पंच) पांच (महव्वए) महाव्रत (य) और (अणुव्वए) पांच अणुव्रत (य) और (तहेव) वैसे ही (पंचासवसंवरे य) पांच आश्रव और संवर रूप (विरतिं) विरति को (त्तिबेमि) कहता हूँ। भावार्थ : हे मनुजों! सच्चारित्र के पालन करने में महा बुद्धिशाली और कर्मों को नष्ट करने में समर्थ ऐसे श्रमण भगवान महावीर ने इस शासन में साधुओं के लिए तो पांच महाव्रत अर्थात् अहिंसा, सत्य, स्तेय, ब्रह्मचर्य, और अकिंचन को पूर्ण रूप से पालने की आज्ञा दी है और गृहस्थों के लिए कम से कम पांच अणुव्रत और सात शिक्षा व्रत या बारह प्रकार से धर्म को धारण करना आवश्यकीय बताया है। वे इस प्रकार है-थूलाओ पाणाइवायाओ वरमणं-हिलते फिरते त्रस जीवों की बिना अपराध के देखभाल कर द्वेषवश मारने की नीयत से हिंसा न करना मुसावायाओ वेरमणं-जिस भाषा से अनर्थ पैदा होता हो और राज एवं पंचायत में अनादर हो, ऐसी लोक विरुद्ध असत्य भाषा को तो कम से कम नहीं बोलना। थूलाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं-गुप्त रीति से किसी के घर में घुसकर, गांठ खोलकर, ताले पर कुंजी लगाकर, लुटेरे की तरह या और भी किसी तरह की जिससे व्यवहार मार्ग में भी लज्जा हो, ऐसी चोरी तो कम से कम नहीं करना। सदारसंतोसे कुल के अग्रसरों की साक्षी से जिसके साथ विवाह किया है उस स्त्री के सिवाय अन्य स्त्रियों को माता एवं बहिन और बेटी की निगाह से देखना और 500000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 00000000000000000000000000000000oop सन्दर्भ : * गृहस्थ - धर्म पालन करने वाली महिलाओं के लिए भी अपने कुल के अग्रसरों की साक्षी से विवाहित पुरुष के सिवाय समस्त पुरुष वर्ग को पिता भ्राता और पुत्र के समान समझना चाहिए और स्वपति के साथ भी कम से कम पर्व तिथियों पर कुशील सेवन का परित्याग करना चाहिए। निर्ग्रन्थ प्रवचन/79 doo0000000000000ooth Jain Education International For Personal & Private Use Only ooooooooooooood www.jainerbrary.org.