________________ 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000g Ag00000000000000000000000000000000000000000000000000000000 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 - मनोगत चतुर्विध संघ के लिए उपयोगी है यह संकलन उपाध्याय रवीन्द्र मुनि श्रुत ज्ञान की परम्परा सदियों से जिनशासन का गौरवशाली आधार रही है। जिनवाणी में अभिव्यक्त या व्याख्यायित जीवन सूत्र अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन जीवन सूत्रों का नित्य प्रति अभ्यास करना, स्वाध्याय की सुन्दर प्रवृत्ति का अनुकरणीय प्रमाण है। इस प्रयास में जिनशासन के अनेक मुनिराजों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। किसी ने इनकी व्याख्या की है, तो किसी ने इनका संकलन किया है, किसी ने इनके आधार पर ही परमार्थी, भाव प्रेरक प्रवचनों की प्रस्तुतियाँ की है। सम्पूर्ण आगम साहित्य से लिए गए इन चुनिन्दा सूत्र रत्नों का यह संकलन "निर्ग्रन्थ प्रवचन" के रूप में साहित्य एवं जिनशासन की सेवा में अद्वितीय योगदान करने वाले जैन दिवाकर पूज्य श्री चौथमल जी म.सा. ने किया है। यह संकलन इतनी प्रेरक एवं प्रखर दृष्टि से किया गया है कि इसकी पंक्ति-पंक्ति का अध्ययन करना एवं उस अध्ययन के आधार पर अपने जीवन में संस्कार रोपण करते हुए जिनशासन प्रणीत वाणी के आधार पर अपना आचरण बनाना चिन्तन–मनन करना अत्यंत लाभकारी है। यही लाभ लेना पुस्तिका का लक्ष्य है। a अनेक वर्षों से यह पुस्तिका त्यागी वर्ग एवं प्रबुद्ध श्रावकों में प्रचलित है। इसकी चुम्बकीय सम्पादन शैली एवं संस्कृत एवं प्राकृत में की गई व्याख्या मूल सूत्र के गहन गम्भीर सन्देश को प्रस्तुत करने में सदैव सफल रही है। इस संकलन में जिन लोगों ने विशेष रूप से योगदान किया है उसमें श्रमण संघीय उपाध्याय श्री प्यारचन्द जी म. आदि का उल्लेख करना अत्यावश्यक है। 01 इन महामनीषियों के परिश्रम से यह रचना नित्य स्वाध्यायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बन गई है चूंकि इसका पुर्नप्रकाशन लम्बे नै निर्ग्रन्थ प्रवचन/4 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000oope 00000000000000ook 000000000000 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org