________________ 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oot do00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000064 छायाः यः समः सर्वभूतेषु, त्रसेषु स्थावरेषु च। तस्य सामायिकं भवति, इति केवलिभाषितम्।।१६।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (जो) जो मनुष्य (तसेसु) त्रस (य) और (थावरेसु) स्थावर (सव्वभूएसु) समस्त प्राणियों पर (समो) समभाव रखने वाला है। (तस्स) उसके (सामाइय) सामायिक (होइ) होती है (इइ) ऐसा (केवली) वीतराग ने (भासिय) कहा है। ___भावार्थ : हे गौतम! जिस मनुष्य का हरी वनस्पति आदि जीवों पर तथा हिलते फिरते प्राणियों मात्र के ऊपर भी समभाव है अर्थात् सूई चुभोने से अपने को कष्ट होता है। ऐसे ही कष्ट दूसरों के लिए भी समझता है। बस, उसी की सामायिक होती है ऐसा वीतरागों ने प्रतिपादन किया है। इस तरह सामायिक करने वाला समदृष्टा मोक्ष का पथिक बन जाता है। मूल : तिण्णिय सहस्सा सत्त सयाई, तेहुचरिं च ऊसासा| एस मुहुनो दिट्ठो, सवेहिं अणंतनाणीहि||२०|| छाया: त्रीणि सहस्त्राणि सप्तशतानि, त्रिसप्ततिश्च उच्छ्वासः / एषो मुहूर्ता दृष्टः, सर्वैरनन्त ज्ञानिभिः / / 20 / / अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (तिण्णियसहस्सा) तीन हजार (सत्तसयाई) सात सौ (च) और (तेहत्तरि) तिहत्तर (ऊसासा) उच्छवासों का (एस) यह (मुहूत्तो) मुहूर्त होता है। ऐसा (सव्वेहि) सभी (अणंतनाणीहिं) अनंत ज्ञानियों के द्वारा (दिटठो) देखा गया है। ___ भावार्थ : हे गौतम! तीन हजार सात सौ तिहत्तर (3773) उच्छ्वासों का समूह एक मुहूर्त होता है। ऐसा सभी अनंत ज्ञानियों ने कहा है। 19000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000ook 64 निर्ग्रन्थ प्रवचन/177 00000000000000ood Education International 0000000000000 www.jainelibrary.org, For Personal & Private Use Only