________________ 5000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 90000000000000 0000000000000000000000000000000000000 doo000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000006 (य) और (भए) भय और (अक्खाइय) कल्पित व्याख्या (दसमा) दशवीं (अवघाए) उपघात के (निस्सिया) आश्रित कही हुई भाषा असत्य है। भावार्थ : हे गौतम! क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, हास्य और भय से बोली जाने वाली भाषा तथा काल्पनिक व्याख्या और दशवीं उपघात (हिंसा) के आश्रित जिस भाषा का प्रयोग किया गया हो, वह असत्य भाषा है। इस प्रकार की भाषा बोलने से आत्मा की अधोगति होती है। मूल: इणमन्नं तु अन्नाणं इहमेगेसिं आहियं| देवउत्ते अयं लोए, बंभउत्तं ति आवरे||१७|| छायाः इदमन्यत्तं, अज्ञानं, इहैकैतदाख्यातम। देवाप्तोऽयं लोकः, ब्रह्मोप्त इत्यपरे।।१७।। ईसरेण कडे लोए, पहाणाइ वहावरे। जीवा जीव समाउत्ते, सुहदुक्ख समन्निए||१८|| ईश्वरेण कृतोलोक: प्रधानादिना तथाऽपरे। जीवाजीवसमायुक्तः, सुखदुःखसमन्वितः।।१८।। संयभुणा कडे लोए, इति वुत्वं महेसिणा| मारेण संथया माया, तेण लोए असासए||१९|| स्वयम्भुवा कृतो लोकः, इत्युक्तं महर्षिणा। मारेण संस्तुता माया, तेन लोकोऽशाश्वतः / / 16 / / माहणा समणा एगे, आह अंडकडे जगे। असो तत्तमकासीय, अयाणंता मुसंवदे||२०| माहनाः श्रमणा एके, आहुरण्डकृतं जगत्। असो तत्त्वमकार्षीत्, अजानन्तः मृषा वदन्ति।।२०।। 'अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (इह) इस संसार में (मेगेसिं) कई एक (अन्न) अन्य (अन्नाणं) अज्ञानी (इण) इस प्रकार (आहियं) कहते हैं, कि (अय) इस (जीवाजीव समाउत्ते) जीव और अजीव पदार्थ से युक्त (सहदुक्खसमन्निए) सुख और दुःखों से युक्त ऐसा (लोए) लोक (देवउत्ते) देवताओं ने बनाया है (आवरे) और दूसरे यों कहते हैं कि (बंभउत्तोसि) ब्रह्मा ने बनाया है। कोई कहते हैं कि (लोए) लोक (इसरेण) ईश्वर ने (कडे) बनाया है। (तहावरे) तथा दूसरे यों कहते हैं कि 000000000000000000000000000000000000000000000000000000oooot * निर्ग्रन्थ प्रवचन/127 do00000000000000ooth Jan Bordcation International For Personal & Private Use Only 00000000000000 www.jainelibrary.org. LON