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________________ D000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oope 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 की कल्पना करके उनकी आध्यात्मिकता पर प्रभाव डालना दूसरी बात है। इसे श्रमण संस्कृति ने कभी सहन नहीं किया। भगवान महावीर के उपदेश ऊंच-नीच का भेद नहीं करते। उनकी वाणी ब्राह्मण-अब्राह्मण, शुद्ध और मलेच्छ के लिए समान है। उनके उपदेश श्रवण करने के लिए सभी जाति एवं श्रेणियों के मनुष्य हो या स्त्रियाँ सभी बिना किसी भेदभाव के उपस्थित होकर सुनते रहे हैं और दलित पतित समझे जाने वाले वर्गों को भी भगवान महावीर के शासन में वही गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है। जो किसी परम ब्राह्मण को प्राप्त था। जैन शास्त्रों में ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं, जिनसे हमारे उपरोक्त कथन की अक्षरशः पुष्टि होती है। 22 श्रमण भगवान महावीर सर्वज्ञ थे। उनके उपदेश देश-काल आदि की सीमाओं से बंधे हुए नहीं थे। वे सर्वकालीन हैं, सार्वदेशिक हैं, सार्वजनिक हैं। आज भी सारा संसार रक्तपात से भयभीत होकर अहिंसा के मार्ग पर चलने हेतु उत्सुक हो रहा है। जीवन को संयमशील और आडम्बरहीन बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। ऊँच नीच की काल्पनिक दीवारों को तोड़ने के लिए भी आज का युग उतावला है। यही महावीर प्रदर्शित मार्ग है, जिस पर चले बिना सम्पूर्ण मानव जाति का कल्याण सम्भव नहीं है। का निर्ग्रन्थ प्रवचन काओजस "निर्ग्रन्थ-प्रवचन" में वाणी का वही औजस प्रकाशित है। कहने की आवश्यकता नहीं कि भगवान महावीर के इस समय उपलब्ध आगम साहित्य से इसका चुनाव किया गया है। लेकिन संक्षिप्तता की ओर भी पर्याप्त ध्यान रखा गया है। ___ यह ठीक है कि भगवान महावीर ने आध्यात्मिकता में ही जगत कल्याण को देखा और उनके उपदेशों को पढ़ने से स्पष्ट रूप से ऐसा प्रतीत होने लगता है कि उनमें कूट-कूटकर आध्यात्मिकता भरी हुई है। उनके उपदेशों का एक-एक शब्द हमारे मन-मस्तिष्क को झंकझोर कर आध्यात्मिकता की भावना उत्पन्न करता है। अतः इनकी व्याख्या करने से हमारे जीवन के goo000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oope निर्ग्रन्थ प्रवचन/9 doo000000000000000 Jas Loucation memorial For Personal & Private Use Only Soooooooo000000naorg
SR No.004259
Book TitleNirgranth Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGuru Premsukh Dham
Publication Year
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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