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________________ 70 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन पतियों का सुख प्राप्त करूं। कालान्तर में एक-दो जन्मों के बाद पांचाल नरेश के यहाँ कन्या के रूप में द्रौपदी नाम से उसका जन्म हुआ। उचित वय एवं. स्वयंवर में उसने अर्जुन आदि पाँच पाण्डवों का चयन किया। द्रौपदी पाण्डवों के साथ हस्तिनापुर में विपुल सुख भोगने लगी। __एक बार नारद जी भ्रमण करते हुए हस्तिनापुर पहुंचे। द्रौपदी के सिवाय सभी ने उनका आदर सत्कार किया। नारद इस पर कुपित होकर अमरकंका में राजा पदमनाभ के पास पहंचे एवं द्रौपदी के लावण्य की प्रशंसा की। पदमनाभ राजा ने प्रेरित होकर देवी की सहायता से द्रौपदी का अपहरण करवा दिया। पद्मनाथ ने द्रौपदी को भोग हेत् निमंत्रित किया जिस पर द्रौपदी ने 6 माह का समय मांगा। इसी बीच पाण्डव श्रीकृष्ण को लेकर अमरकंका पहुंचे। पद्मनाभ को युद्ध में परास्त किया और द्रौपदी का उद्धार किया। कुछ समय उपरान्त द्रौपदी के पाण्डुसेन नामक पुत्रोत्पन्न हुआ। पाण्डुसेन के युवा होने पर पाण्डवों ने उसे राज्य देकर दीक्षा अंगीकार कर ली। द्रौपदी ने भी पति का अनुसरण किया और अन्त में स्वर्गा को प्राप्त हुई। इस अध्ययन में मुख्य रूप से निम्न तथ्यों को प्रकाशित किया गया है१. इसमें ब्राह्मणों की उचित शिक्षा का समावेश है जो ब्राह्मण होता था वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और अन्य ब्राह्मण ग्रन्थों का ज्ञाता होता था। 2. तत्कालीन समाज की नारियाँ समस्त कलाओं में प्रवीण होती थीं। नागश्री, रूपश्री, यक्षश्री, सुकुमारिका, द्रौपदी आदि इसी बात का संकेत करती हैं। 3. नारी में सदाचार, शील, संयम की प्रबलता है। 4. धर्मरुचि मुनि की जीवों के प्रति आस्था प्रशंसनीय है। 5. शीलरक्षा एवं समर्पण का भाव समाहित है। गृहीतव्रतों का संरक्षण एवं संवर्धन की भावना से संवृद्ध है। ___द्रौपदी के इस अध्ययन में नारी के विविध रूपों का वर्णन है। प्राय: सभी नारियाँ ब्रह्मरक्षिका हैं। वे शिथिलाचार से परे उत्कृष्ट जीवन को अपनाना चाहती हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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