________________ ज्ञाताधर्मकथांग की विषयवस्तु 57 का सहारा लेकर गहरे जल से भी पार हो जाता है। तुम्बक की लघुता ही पार करने में समर्थ होती है। कथाकार ने तुम्बक को आत्मा का प्रतीक माना है। वह शुद्ध, निर्मल, पवित्र एवं उर्ध्वगमन स्वभाव वाली होती है। परन्तु वही आत्मा बाह्य राग, द्वेष, मोह आदि आवरणों से आवृत होकर गुरुता को प्राप्त होती है। जिस तरह तुम्बक मिट्टी के आठ लेपों से भारी होकर पानी में जाते ही नीचे की ओर चली जाती है। उसी तरह आत्मा भी राग, द्वेष आदि मिट्टी के लेपों से लिप्त होकर नीचे की ओर चली जाती है। ___जीव की दशा ऐसी ही है जो तुम्बक की भाँति मिट्टी के लेप से लिप्त होकर नीचे की ओर चला जाता है परन्तु जैसे-जैसे वह बोध प्राप्त करता है वैसे-वैसे कर्मों से हटकर अपने स्वभाव को प्राप्त हो जाता है। 7. रोहिणी ज्ञात सप्तम अध्ययन में राजगृह नगर का वर्णन है। उस नगर में धन्य नामक सार्थवाह रहता था। वह पूर्ण समृद्धशाली था। उसकी पत्नी का नाम भार्या था। उसके चार पुत्र थे धनपाल, धनदेव, धनगोप एवं धनरक्षित। उन चारों की पत्नियों के नाम इस प्रकार थे- उज्झिका, भोगवती, रक्षिका और रोहिणी। एक बार धन्य सार्थवाह ने अपने सभी स्वजनों, मित्रों आदि के समक्ष अपनी पुत्रवधुओं की परीक्षा लेने की सोची। इस तरह सोचकर धन्य सार्थवाह ने चारों पुत्रवधुओं को पाँच चावल के दाने दिए यह कह कर कि जब मैं तुमसे यह चावल के दाने माँगू, तुम मुझे लौटा देना। वह यह ज्ञात करना चाहता था कि कौन पुत्रवधु किस प्रकार उनके द्वारा दिये गये चावल की रक्षा करती है, सार सम्भाल करती है या * बढ़ाती है? पहली पुत्रवधु उज्झिका ने उन पाँच चावल के दानों को कचरें में फेंक दिए, ऐसा सोचकर कि जब ससुर जी ये दाने माँगेंगे तो कोठार में जो चावल का ढेर पड़ा है उसमें से दे दूंगी। ____दूसरी पुत्रवधु भोगवती उन चावल के दानों को खा गई तथा तीसरी पुत्रवधु रक्षिका ने सोचा कि सबके सामने ये पाँच चावल के दाने हमें दिए हैं इसका कोई . न कोई कारण होना चाहिए ऐसा सोचकर उसने इन दानों को एक डिबिया में बन्द करके उसकी सार सम्भाल करने लगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org