________________ 47 प्राकृत कथा साहित्य का उद्भव एवं विकास है कि उन्हें उपन्यास कहा जा सकता है जिसके निम्न कारण हैं (अ) साधारण कथाओं की अपेक्षा इतिवृत्त विशाल होना। (ब) भाषा-प्रवाह विलक्षण। (स) लयात्मकता। (द) दर्शन, विवेक, वृत्त, चरित्र, शील, दान सम्बन्धी विशेषताएँ। 14. भाग्य एवं संयोग- प्राकृत कथाओं में स्पष्ट किया गया है कि भाग्य ही सब कुछ है। व्यक्ति का अपना कुछ नहीं। जन्म-जन्मान्तरों के कर्मों के प्रभाव से जो होता है वह होना ही था। भाग्यवाद पर आधारित इन कथाओं में संयोगवियोग को आधार माना गया है। इस प्रकार प्राकृत कथाओं की विशेषताएँ बहुत ही सारगर्भित हैं। यही कारण है कि ये सरल, सहज, रोचक हैं जो सीधे हृदय पर प्रहार करती हैं। धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को अलंकृत वाणी में अभिव्यंजित करना प्राकृत कथाओं का कार्य है। अलंकार एवं रस योजना भी इसमें सम्मिलित हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org