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________________ तृतीय अध्याय प्राकृत कथा साहित्य का उद्भव एवं विकास मानव जीवन के विकास के साथ कथा का आविर्भाव हुआ होगा इसमें संदेह नहीं हो सकता है, फिर भी यह अवश्य कहा जा सकता है कि सुख-दुःख को व्यक्त करने के लिये मनोरंजन या हास-परिहास के रूप में कथा अवश्य रही होगी। कथा का आविर्भाव कब, कहाँ और कैसे तथा किसने किया इस प्रश्न का समाधान यही है कि मनुष्य के विचारों से जो भावधारा निकली वही कथा बन गयी। कथा स्वरूप एवं विश्लेषण - कथा का सामान्य अर्थ निर्वचन है। 'क' 'था' अर्थात् अमुक व्यक्ति था और उसी से कथा का विकास होता चला गया। अत: यह कह सकते हैं कि कथा मानव जीवन के साथ जुड़ी हुई है।१ कथा शब्द “कथ्" धातु से बना है। 'कथ्' का अर्थ कहना है। अर्थात् जो कहा जाता है या जो प्रतिपादित किया जाता है वर्ह कथा कहलाती है। डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री ने कथा के विषय में लिखा है - कथा भारतीय साहित्य का अत्यन्त प्राचीन अंग है। इनका प्रचलन प्रकृति विषयक रहस्य को समझने और समझाने के निमित्त से हुआ था। तब उन्हें कथा नहीं कहा जाता था। कथा का सबसे पुराना नाम आख्यान मिलता है। वेदों में आख्यानों के विभिन्न उल्लेख मिलते हैं। इन आख्यानों का सम्बन्ध विशेष रूप से अतिमानवीय घटनाओं से युक्त है। वस्तुभेद की अपेक्षा से आख्यान, आख्यायिका तथा कथा नाम प्रचलित हुआ। वस्तुत: इन तीनों का विकास एक ही परम्परा से हुआ है। निर्यक्तिकार यास्क ने आख्यान को इतिहास कहा क्योंकि सर्वप्रथम जो कथाएँ साहित्य रूप में प्रचलित हुईं वे ऐतिहासिक थीं, इसलिए इतिहास और आख्यान दोनों ही एक कहे गए हैं। 1. शास्त्री, देवेन्द्र मुनि, जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा, पृ. 6. प्रकाशक : तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, उदयपुर 1989. 2. शास्त्री, देवेन्द्रकुमार, भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश कथाकाव्य, पृ. 65, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली 1970. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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