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________________ उपसंहार 173 इसमें एक ओर चेतन को अचेतन के प्रति भी लगाव रखने की भावना समाहित है तो दूसरी ओर गहरे परिवेश में अनुभूति और सौहार्दमयी आस्था भी यथार्थ को लेकर सत्यार्थ का निरूपण करती है। ज्ञाताधर्मकथांग के प्रत्येक मूल्यांकन से कोई न कोई दिशा निर्देश अवश्य मिलता है। इसके सांस्कृतिक विवेचन से प्रकृति के परिवेश की जानकारी होती है। इसमें यमुना, सरयू, कोशी, माही, गंडकी, ब्रह्मपुत्र, गंगा आदि बड़ी नदियों की संख्या 14000 1 बतायी गयी है। इनके योजन का प्रमाण लम्बाई, गहराई आदि अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं हैं। नये-नये नगरों, उपनगरों, ग्रामों, आदि का विवेचन अन्यत्र नहीं मिलता। बत्तीस सुकुमारियों के नामों का उल्लेख, उनकी दीक्षा आदि का प्रसंग इसकी मौलिकता है। इसके अतिरिक्त अन्य कई ऐसे प्रसंग भी है जिनको सांस्कृतिक विवेचन में प्रस्तुत किया गया है। ___ साहित्यिक दृष्टि से इसकी सामग्री आज भी उदात्तीकरण के भाव को व्यक्त करती है। प्रत्येक कथानक चरित्र-चित्रण, कथोपकथन आदि को व्यक्त करने की इसकी जो शैली है वह इससे पूर्व के आगमों में नहीं प्राप्त होती है। परवर्ती आगमों में जो भी कथानक विकसित हुए हैं उनमें इस कथाग्रन्थ का अवश्य ही प्रभाव पाया जाता है। ज्ञाताधर्म के पश्चात् के प्राकृत कथा साहित्य में बदलाव अवश्य आया है परन्तु सभी का उद्देश्य मानव को राग से हटाकर विराग की ओर ले जाना रहा है। सभी का उपसंहार सुखान्त है। दुखान्त वातावरण कथानकों के मध्य में कह दिये गये हैं जो कथा कहने की एक शैली है। ज्ञाताधर्म के कथा कहने की जो शैली है वह आज भी जनमानस के हृदय पटल पर उसी क्रम को लिए हुए निश्चित उद्देश्य का प्रतिपादन करती हैं। यही इस कथा के साहित्य का साहित्यिक योगदान कहा जा सकता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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