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________________ 148 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन विस्तृत तथा चार हाथ प्रमाण लम्बी होती थी। ज्ञाताधर्मकथा के सोलहवें अध्ययन में 'मृगचर्म' का विवेचन है। साथ ही यह भी उल्लेख है कि धारिणी देवी आकाश. तथा स्फटिक मणि के समान वस्त्र पहनी हुईं थीं जो इतना कोमल था कि नासिका के निश्वास की वायु से उड़ जाता था।२ राजा कोरा तथा बहुमूल्य वस्त्र धारण करते थे।३ स्नान के पश्चात् पक्षी के पंख के समान कोमल तथा कषाय रंग से रंगे वस्त्रों से उनका शरीर पोंछा जाता था। उत्तरीय ओढ़नेवाले वस्त्र को उत्तरासंग कहते थे। यह लम्बा लटकता हुआ दुपट्टा होता था। इसका प्रयोग राजा लोग करते थे।५ वस्त्रों को पहनने से पूर्व शरीर पर सुगंधित पदार्थों जैसे चन्दन, सरस आदि का विलेपन६ तथा शतपाक और सहस्त्र पाक आदि श्रेष्ठ सुगंधित तेलों से शरीर की मालिश करते थे। आभूषण स्त्री तथा पुरुष शरीर को शोभायमान बनाने के लिए आभूषणों का प्रयोग करते थे। स्त्रियाँ गले में सुन्दर हार, कानों में कुण्डल, हाथों में कड़े, अंगुलियों में अंगूठी, पैरों में नुपूर तथा कमर में करधनी पहनतीं और बहुओं को श्रेष्ठ बाजूबन्द से स्तंभित करती थीं। राजा लटकते हुए कटिसूत्र, कंठा, अंगूठी, एकावली कुण्डल, कटुक और त्रुटिक नामक आभूषण पहनते थें।१० स्त्रियों की दशा जैनागमों में स्त्रियों के दो रूप देखने को मिलते हैं- आदर्श और पतित। स्त्रियों का परिवार में माता, पत्नी, बहन, पुत्री तथा पुत्रवधु का रूप था।११ आचारांग में स्त्रियों को आयुष्मति, यवति (आप), भगवती, उपासिका, श्राविका तथा बहन (भगिनी) आदि शब्दों से सम्बोधित किया गया है।१२ कहीं-कहीं ऐसे स्त्रियों का भी उल्लेख मिलता है जिन्होंने दीक्षा ग्रहण करके साध्वी व्रत धारण किया था। मल्लीकुमारी जिनहोंने दीक्षा अंगीकार करके अरिहन्त पद को प्राप्त किया था।१३ बहुत-सी ऐसी 1. आचारांगसूत्र 2/5/553. 2. ज्ञाताधर्मकथांग 1/80, 44. 3. वही, 1/30. 4. वही, 1/30. 5. वही, 1/30. 6. वही, 1/30. 7. वही, 1/29. 8. वही, 1/44. 9. वही, 1/142. 10. वही, 1/30. 11. उत्तराध्ययनसूत्र 6/3. 12. आचारांगसूत्र 4/529. 13. ज्ञाताधर्मकथांग 8/183, 192. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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