________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन 143 एवं राजगृह इन दो को ही आधार बनाया है क्योंकि महावीर ने इन दोनों स्थानों पर ही अपना अधिकांश समय व्यतीत किया था। द्वारकानगरी का क्षेत्रफल देते हुए कहा गया है कि वह पूर्व-पश्चिम में 12 योजन लम्बी और उत्तर-दक्षिण में नौ योजन चौड़ी थी। इसकी रचना अलकापुरी/ इन्द्रपुरी के समान की गयी थी। इसके उत्तर-पूर्व दिशा में रेवतक पर्वत/गिरनार पर्वत इसकी शोभा में चार चाँद लगाते थे जो बहुत ऊँचे तथा आकाशमार्ग को छूनेवाले थे।१ पंचम अध्याय में सौगंधिका नगरी का उल्लेख है जो समृद्धशाली थी। इसी सौगंधिका नगरी को कथाकार ने परिव्राजकों के निवास की नगरी माना है। वितशोकानगरी को विजय क्षेत्र की राजधानी कहा गया है। विजय क्षेत्र को सलिलावती नाम से भी सम्बोधित किया गया है। अंगदेश में श्रावस्तीनगर, 5 कुणाल, मिथिला, विदेह, हस्तिनापुर, कुरु, पांचाल, कांपिल्य आदि नगरों का उल्लेख एक मात्र मल्ली अध्ययन में हुआ है। मिथिला का भी उल्लेख आया है।६ इस प्रकार इस आगम में केवल नगरों का उल्लेख मात्र नहीं है, अपितु उनकी परिधि, क्षेत्र, विस्तार आदि का भी वर्णन है। प्रमुख नदियाँ . ज्ञाताधर्मकथांग में विविध नदियों के वर्णन में गंगा को महानदी कहा गया है। जैनागम साहित्य एवं ज्ञाताधर्मकथांग में सीता, नारीकान्ता, रक्ता, रक्तावली आदि महानदियों का उल्लेख भी हुआ है। सीतोदान को भी महानदी कहा गया है। वनों का विवेचन ज्ञाताधर्मकथा में नैसर्गिक रूप में वनखण्डों का समावेश है। मणिकर श्रेष्ठी ने नंदा पुष्कर्णी के चारों ओर वनखण्ड लगवाए, रोपे, उनकी रखवाली की, संगोपन . * किया इत्यादि वर्णन के प्रसंग में यह भी कथन किया गया है कि यह वनखण्ड विशाल पुष्पों, पत्रों और हरियाली से युक्त था।१° अग्रामिक अटवी, 11 नंदनवन 12 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 5/2-3. 2. वही, 5/30. 3. वही, 5/40. 4. वही, 8/3. 5. वही, 8/79. 6. वही, 8/164. 7. वही, 4/2. 8. स्थानांगसूत्र 2/292, 2/302, ज्ञाताधर्मकथांग 19/2. 9. वही, 8/2. 10. वही, 13/13. 11. वही, 18/29. 12. वही, 5/3. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org