________________ 124 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन (4) तृतीय विभक्ति एकवचन से लेकर सप्तमी एकवचन पर्यन्त आ, आ, इ और ए प्रत्यय होते हैं। ज्ञाताधर्मकथा सूत्र में 'ए' प्रत्यय की ही बहुलता है। यथादित्तीए जुत्तीए छायाए पभाए ओयाए लेस्साए 10/5/ चम्पाए णयरीए बहिया 1/2 (षष्ठी), तत्थ णं चंपाए नयरीए, 3/4 (सप्तमी) 25. सर्वनाम शब्द रूप पुलिंग में अकारांत, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग इन तीनों में शब्द रूपों की तरह प्रत्यय लगते हैं। परन्तु कुछ विभक्तियों में अतिरिक्त रूप ही बनते हैं। (1) अकारान्त पुलिंग प्रथमा बहुवचन में “ए' प्रत्यय का ही प्रयोग होता है। यथा सव्वे चिट्ठति। 11/10, 12 / / (2) चतुर्थी एवं षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में "सिं'- एसिं प्रत्यय का भी प्रयोग होता है। यथा- तेसिं 3/24 / (3) स्त्रीलिंग प्रत्ययों के सप्तमी बहुवचन में निम्न प्रयोग होते हैं। यथा— तासिं 14/33 (4) सप्तमी विभक्ति के एकवचन में म्मि, ए, हिं प्रत्ययों के अतिरिक्त "स्सिं" प्रत्यय भी पाया जाता है। 26. युष्मद् तुम्ह तुम्ह, अम्ह शब्द के रूप तीनों लिंगों में समान हैं। एकवचन बहुवचन प्रथमा तुमं, 1/122 तुम्ह, तुम्हं, 14/32 द्वितीया - तुम, णं तुझं, 1/177 तुम्हे, 1/122 तुभं, 14/32 तृतीया ते तुम्हेहि, तुम्हेति, तुज्झेहि तुब्भेहिं, 1/118. तुज्झेहिं चतुर्थी/षष्ठी तव, तुह, तुब्भे, 1/63, 8/96 1/171 तुम्हाण, तुम्हाणं पंचमी तुम्हां तुम्हाओ तुम्हाओ, तुज्झेहितो सप्तमी तुम्हम्मि, तुम्हस्सिं तुम्हेसु, तुम्हेसुं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org