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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का भाषा विश्लेषण 121 13. द्वितीय विभक्ति के बहुवचन में 'ए' प्रत्यय की बहुलता है। यथा- जणवूहे, जणबोले, जणकलकले।१ ते बहवे उग्गे भोगे।२ 14. द्वितीय विभक्ति के बहुवचन में दीर्घ भी होता है। यथा- बहवे उग्गा भोगा, एगाभिमुहा निग्गच्छंति।३ 15. तृतीय विभक्ति के एवचन में “एण” तथा “एणं' का प्रयोग होता है। ज्ञाताधर्मकथा में “एणं' की बहुलता है। यथा— धण्णेणं सत्थवाहेण। आउक्खएणं भवक्खएणं। 16. तृतीय विभक्ति के बहवचन में हि, हिं, हिँ, प्रत्ययों का व्याकरणकारों ने उल्लेख किया है। परन्तु ज्ञाताधर्मकथा में हि, हिं प्रत्यय का प्रयोग है। उन प्रत्ययों में भी 'हिं' की बहुलता है। यथा- जियसत्तु पामोक्खेहिं छहिं राईहिं।६ अणुलोमेहि, पडिलोमेहि, कलुणेहि, उवसग्गेहि। 17. चतुर्थी एवं षष्ठी विभक्ति में समानता है। फिर भी ज्ञाताधर्मकथा में किसी भी वस्तु को प्रदान करने के लिए या देने के लिए जो कार्य किया गया है उसमें चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग कई जगह स्पष्ट होता है। जैसे कुलघरवग्गस्स. सालिअक्खए धण्णस्स सत्थवाहस्स हत्थे दलयइ। यहाँ पर दलयइ क्रिया का प्रयोग देने अर्थ में है। इसलिए यहाँ चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग स्पष्ट है। नोट- चतुर्थी विभक्ति के एकवचन में कहीं-कहीं पर “आय'' प्रत्यय का भी प्रयोग हुआ है। जैसे- ‘पणिहाय' 10/5 18. सम्बन्धी के योग में षष्ठी का प्रयोग भी ज्ञाताधर्मकथा में स्पष्ट है। यथा पोसहियस्स बंभचारिस्स.................करेमाणस्स।१० 19. चतुर्थी एवं षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में प्रायः ण और णं प्रत्यय का प्रयोग होता है। परन्तु ज्ञाताधर्मकथा में णं प्रत्यय की बहुलता है। यथा- “बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं सावगाणं साविगाणं।११ 1. ज्ञाताधर्मकथा, 1/109. 2. वही, 110. . 3. वही, 109. 4. वही, 2/28. .. 5. वही, 2/52. 6. वही, 8/132. 7. वही, 9/60 8. वही, 7/4. 9. वही, 7/24 10. वही, 1/66. 11. वही, 4/10. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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