________________ 120 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन पुलिंग में अकारांत, इकारांत, ईकारांत, उकारांत और ऊकारांत शब्दों का प्रयोग होता है। अकारांत शब्द में जिण, तित्थ, समण, सावग आदि। इकारांत शब्द में मुणि, जति, कवि आदि। ईकारांत शब्द में केवली, णाणी, झाणी, जोगी आदि। . उकारांत शब्द में माणु, जाणु, पिउ आदि। ऊकारांत शब्द में सव्वण्णू आदि। 7. स्त्रीलिंग- अकारांत- कहा, चंपा, माला, गाहा आदि। इकारांत- रोहिणी, देवी, धारिणी, णायरी आदि। उकारांत- धेनु, रेणु आदि। ऊकारांत- बहू। 8. नपुंसकलिंग- अकारांत- णाण, झाण, लक्खण आदि। इकारांत- दहि, वारि आदि। उकारांत- महु, वत्थु आदि। अर्धमागधी के शब्द रूपों की विशेषताएँ / 9. अर्धमागधी प्राकृत में पुलिंग अकारांत प्रथमा एकवचन में प्राय: 'ए' प्रत्यय होता है। ज्ञाताधर्मकथा में इस तरह के प्रयोगों की प्रारम्भ से लेकर अंत तक बहुलता है। यथा- “णं से अज्जजंबूणामे अणगारे जायसड्डे......... उद्वेति'।१ 10. कहीं-कहीं पर अकारांत प्रथमा एक वचन में 'ओ' प्रत्यय भी होता है। यथा कोणिओ नामं राया होत्था, वण्णओ।२ कोणिओ निग्गओ। धम्मो कहिओ।३ 11. प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में मूल शब्द का दीर्घ हो जाता है। ज्ञाताधर्मसूत्र के सभी अध्ययनों में इस तरह के प्रयोग मिलते हैं। 12. द्वितीय विभक्ति के एकवचन में अनुस्वार ( ) का प्रयोग होता है। यथा लेहं, गणियं, रूवं, नट्ट, गीयं, वाइयं आदि। 1. ज्ञाताधर्मकथा, 1/7. 2. वही, 1/3. 3. वही, 1/5. 4. वही, 1/99. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org