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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक अध्ययन अतिशय बुद्धिशाली है उसमें औतपत्तिकी-बुद्धि, वैनयिकी-बुद्धि, कर्मजा-बुद्धि और पारिणामिकी-बुद्धि इन चारों ही बुद्धियों का समावेश है। प्रस्तुत गद्यांश भाषा-शैली के सत्य को उद्घाटित करता है। यथा-सुंदरंगे, ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरुवे, साम-दंड-भेय उवप्पयाण-णीति-सुप्पउत्तणय विहण्णू।इस गद्यांश में अलंकृत भाव, शब्द, सौन्दर्य, उपमा, रूपक आदि का समावेश है। इस कथानक के विवेचन में व्यजंकता भी है। जिस समय रानी धारिणी दु:खी होती हैं तब वे न दूसरों का आदर करती हैं और न जानती हुई कुछ कहती हैं।३ जब राजा श्रेणिक शपथ दिलाते हैं तब धारिणी देवी अपने अभिप्राय को व्यजंनात्मक रूप में ही अभिव्यक्त करती हैं। इसी प्रकार संघाट अध्ययन में भाषा शिल्प को एक नया मोड़ दिया गया है। यथा मैं निर्ग्रन्थ, प्रवचन पर प्रतीति करता हूँ। मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन पर रुचि करता हूँ। मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन का अनुसरण करने के लिए उद्यत होता हूँ।" इत्यादि वचन भाव एवं श्रद्धा उत्पन्न करते हैं। शैलक अध्ययन का संवादात्मक विवेचन वरण पद विशेषण भाव आदि की विशेषताओं को दर्शाता है। यथा एगे भवं? दुवे भवं? अणेगे भवं? अक्खए भवं? अव्वए भवं? अवट्ठिए भवं? अणेगभूयभावभविए वि भवं? एगे वि अहं, दुवे वि अहं, जावं अणेगभूयभावभविए वि अहं।५ अर्थात् जब यह प्रश्न किया कि आप एक हैं, आप दो हैं तब उसका समाधान करते हुए कहा कि आप एक हैं, दो हैं. और अनेक भी हैं। ___इस प्रकार भाषा की प्रभावपूर्ण शैली अभिव्यक्ति को नया स्वरूप प्रदान करती है। गद्य के क्षेत्र में इस प्रकार की शैली सुरुचि उत्पन्न करती है तथा भाषा में ओजस्विता, सजीवता, प्रौढ़ता और प्रभावशीलता को स्पष्ट करती है। इस दृष्टि से ही ज्ञाताधर्मकथा की पद रचना को अधिक प्रभावी बनाया गया है। भाषा-शैली की दृष्टि से पद रचना को निम्न रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है, यथा 1. समास पद और उसकी प्रासंगिकता। ' . 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 1/15. 3. वही, 1/47. __5. . वही, 5/50. 2. वही, 1/15. 4. वही, 2/52. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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