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ङ) शौरसेनी प्राकृत के गद्यांश का उदाहरण
तेण वि सोरट्ठ-विसय-गिरिणयर-पट्टण-चंदगुहा-ठिएण अलैंग-महाणिमित्तपारएण गंथ-वोच्छेदो होहिदि त्ति जाद-भएण पवयण-वच्छलेण दक्षिणावहाइरियाणं महिमाए मिलियाणं लेहो पेसिदो। लेह-ट्ठिय-धरसेणाइरिय-वयणमवधारिय तेहि वि आइरिएहि बे साहू गहण-धारण-समत्था धवलामल-बहु-विह-विणयविहूसियंगा सील-माला-हरा गुरु-पेसणासण-तित्ता देस-कुलजाइ-सुद्धा सयल-कला-पारया तिक्खुत्ताबुच्छियाइरिया अंधविसयवेण्णायडादो पेसिदा।
तेसु आगमच्छमाणेसु रयणीए पच्छिमभाए कुंदेंदु-संखवण्णा सब्ब-लक्खण-संपुण्णा अप्पणो कय-तिप्पदाहिणा पाएसु णिसुढियपदियंगा बे वसहा सुमिणंतरेण धरसेण-भडारएण दिट्ठा। एवंविहसुमिणं दठूण तुट्टेण धरसेणाइरिएण 'जयउ सुय देवदा' त्ति संलवियं'। - तद्दिवसे चेय ते दो वि जणा संपत्ता धरसेणाइरियं। तदो धरसेण-भयवदो किदियमं काउण दोण्णि दिवसे बोलाविय तदिय-दिवसे विणएण धरसेण-भडारओ तेहिं विण्णत्तो ‘अणेण कज्जेणम्हा दो वि जणा तुम्हं पादमूलमुगवया' त्ति। 'सुठु भई' ति भणिऊण धरसेण-भडारएण दो वि आसासिदा।
(यह गद्यांश आचार्य पुष्पदन्त-भूतबलि प्रणीत “घटखण्डागम, भाग १, पृ. ६८-६९ से लिया गया है, जिसमें इस आगम ग्रन्थ-लेखन का पूरा वृत्तान्त प्रस्तुत किया गया है)
हिन्दी अनुवाद - सौराष्ट्र (गुजरात-काठियावाड़) देश के गिरिनार नाम के नगर की चन्द्रगुफा में रहने वाले, अष्टांग महानिमित्तके पारगामी, प्रवचन-वत्सल
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