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________________ पुरुष: भट्टामा एव्वं भण। शहजे किल जे विणिन्दिए ण हु दे कम्म विवज्जणी अए । पशुमालणकम्मदाणे अणुकम्पामिदं एव्व शोत्तिए । । — श्यालः तदो तदो । पुरुषः एक्करिंश दिअशे खण्डशो लोहिअमच्छे मए कप्पिदे जाव। तश्श उदलब्भन्तले एदं लदणभाशुलं अङ्गुलीअअं देक्खिअं । पच्छा अहके शे विक्कआअ दंशअन्ते गहिदे भावमिश्शेहिं । मालेह वा, मुञ्चेह वा, अशं शे आश्रमवुत्तन्ते । ― (हिन्दी अनुवाद) ( इसके अनन्तर पुलिस का प्रधान श्याल तथा पीछे की ओर (हाथ) बंधे हुए पुरुष को लेकर दो सिपाही प्रवेश करते हैं ।) दोनों सिपाही ( मारकर ) अरे चोट्टे ! बता, तुम्हारे द्वारा यह जड़े हुए एवं खुदे हुए नाम वाली राजा की अंगूठी कहाँ से पाई गई ? पुरुष ( भय के अभिनय के साथ) महाशय ! प्रसन्न हों। मैं ऐसा (= चोरी का ) काम करनेवाला नहीं हूं । पहला सिपाही - तो क्या उत्तम ब्राह्मण यह (जान) करके राजा के द्वारा (इसका ) दान दिया गया है। पुरुष – सुनिये तो । मैं शक्रावतार में रहने वाला धीवर हूँ । दूसरा सिपाही गई है। - - - - श्याल ॐ दोनों (सिपाही) - श्रीमान् जी ! जैसे आज्ञा दें । कह । चोर कहीं का ? क्या हम लोगों के द्वारा जाति पूछी सूचक ! सब कुछ क्रम से कहे। उसे बीच में मत टोको । Jain Education International पुरुष मैं 'जाल से निकलने आदि रूप मछलियों को पकड़ने के उपाय से कुटुम्ब का भरण करता हूँ। श्याल (हँसकर) तब तो बड़ी शुद्ध आजीविका है। ५८ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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