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________________ लोकप्रियता ज्ञात होती है। इसीलिए वैदिक काल से जनसामान्य द्वारा दैनिक व्यवहर में बोली जाने वाली जनभाषा प्राकृत को तीर्थंकर महावीर और भगवान् बुद्ध ने अपने उपदेश देने का माध्यम बनाया। जब से प्राकृत में साहित्यिक रचना प्रारम्भ हुई, तभी से वह संस्कृत की प्रतिस्पर्धा में आ गयी और संस्कृत के समानान्तर ही इसका साहित्यिक विकास होने लगा। वैदिकभाषा के समानान्तर जनभाषा, जिसे प्राकृत कहा गया है, निरन्तर विकसित होती जा रही थी। ये रूप वस्तुतः प्राकृत या देश्य थे, जो शनैः शनैः वैदिक भाषा में भी मिश्रित हो गये। छान्दस भाषा से प्राकृत भाषा का विकास छान्दस को प्राचीन भारतीय आर्यभाषा कहा गया है। एक ही मूलस्रोत से विकसित छान्दस और लौकिक संस्कृत - ये दोनों भाषाएं साहित्यिक रूप धारण कर स्थिर हो गईं, किन्तु भाषा का प्रवाह नदी के जल की भाँति निरन्तर होता रहा है। छान्दस के पहले की जो जनभाषा प्रवहमान थी, उससे प्राकृत भाषाओं का विकास हुआ। इस प्राकृत के अनेक रूप/शब्द छान्दस (ऋग्वेद और अथर्ववेद) में आज भी सुरक्षित हैं। इसलिए यह माना जा सकता है कि प्राकृत और संस्कृत दोनों का मूलस्रोत तत्कालीन जनभाषा तथा छान्दस है। .... डॉ. पी. डी. गुणे ने लिखा है - प्राकृतों का अस्तित्व निश्चित रूप से वैदिक बोलियों के साथ-साथ वर्तमान था। इन्हीं प्राकृतों से परवर्ती साहित्यिक प्राकृतों का विकास हुआ। वेदों एवं पण्डितों की भाषा के साथ-साथ मंत्रों की रचना के समय भी एक ऐसी भाषा प्रचलित थी, जो पण्डितों की भाषा से अधिक विकसित थी। इस भाषा में मध्यकालीन भारतीय बोलियों की प्राचीनतम अवस्था की प्रमुख विशेषतायें वर्तमान थी। (एन इन्ट्रो. टू कम्परेटिव फिलासफी, पृ. १६३) __डॉ. पिशल ने (प्राकृत भा. का व्याकरण, पृ. १४) लिखा है - "प्राकृत भाषाओं की जड़ें जनता की बोलियों के भीतर जमी हुई हैं और इनके मुख्य तत्त्व आदिकाल में जीती जागती और बोली जाने वाली १५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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