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प्राकृत भाषा विमर्श
प्राकृत भाषा और उसका वैशिष्ट्य
पृष्ठभूमि
भाषा व्यक्ति के अन्दर के मनोभावों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। विविध भाषायें और संस्कृतियाँ प्रदेश और क्षेत्र विशेष के भूगोल तथा इतिहास की देन है। अतः यह सम्पूर्ण विश्व भाषाओं तथा संस्कृतियों का रंगस्थल है, जिसे हम रंग-बिरंगे फूलों का सुन्दर उपवन कह सकते हैं और विविध रंगों, आकारों के फूलों की भाँति भाषाओं की यह विविधता ही उसका सौन्दर्य है । भारत में भी सहस्रों भाषायें और बोलियाँ हैं । इनमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश जैसी प्राचीन भारतीय भाषाओं का अपना विशेष महत्त्व है। ये भाषायें भारतीय संस्कृति और साहित्य की आत्मा हैं ।
संस्कृत-भाषा और इसके विशाल साहित्य के सार्वभौमिक महत्त्व से तो प्रायः सभी सुपरिचित हैं, किन्तु अतिप्राचीन काल से जनभाषा के रूप में प्रचलित मागधी, अर्धमागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री, अपभ्रंश आदि . रूपों में जीवन्त प्राकृत भाषाओं और इनके विशाल साहित्य से भारतीय जनमानस उतना परिचित नहीं है, जबकि प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान, तत्त्वज्ञान, संस्कृति और इतिहास तथा लोक-परम्पराओं आदि के सम्यक् ज्ञान हेतु प्राकृत भाषा और इसके विविध एवं विशाल साहित्य का अध्ययन अपरिहार्य है।
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