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________________ डॉ. राजमल बोरा ने ‘भारत की भाषायें' नामक पुस्तक में लिखा है कि संस्कृत भाषा अपने मूल रूप में वैदिक संस्कृत थी और उसका विस्तार जब पूरब और दक्षिण की ओर रहा था, उस समय देश में अन्य भाषायें बोली जाती थीं । - यह इस बात का प्रतीक है कि राष्ट्रीय एकता, अखण्डता, सौहार्दभाव और इनके लिए वातावरण निर्माण में भाषा कितना महत्वपूर्ण माध्यम होती है ? संस्कृति की सुरक्षा भाषा की उदारता पर ही निर्भर है। और प्राकृत-अपभ्रंश भाषाओं की सुरक्षा भी हम सभी की उदारता पर ही निर्भर है। क्योंकि ये भाषाएं सदा से उदारता के क्षेत्र में अग्रणी रही हैं। जिनका प्रभाव आज की प्रायः सभी भारतीय भाषाओं में स्प्ष्ट दिखलाई देता है। प्राकृत- अपभ्रंश भाषायें और इनके समृद्ध साहित्य में भारतीय संस्कृति एवं लोक संस्कृति के मूल स्वर ओजस्वी रूप में मुखरित होते हैं । किन्तु आश्चर्य है कि जो स्वयं अनेक भाषाओं की जननी और लम्बे काल तक राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित रही - वह राष्ट्र की 'बहुमूल्य धरोहर प्राकृत भाषा आज इतनी उपेक्षित क्यों है ? जिसे आज अपनी अस्मिता एवं पहचान बचाने और मूलधारा से जुड़ने हेतु संघर्ष करना पड़ रहा है ? केन्द्र और राज्य सरकारों की ओर से अन्य अनेक भारतीय भाषाओं के विकास हेतु स्थापित अकादमी या संस्थानों की भांति सम्पूर्ण देश में एक भी प्राकृत अकादमी, प्राकृत विश्वविद्यालय या संस्थान की स्थापना आज तक क्यों नहीं हुई ? ये सब प्रश्न बार-बार उठते और मन को कचोटते हैं । किन्तु इन सब प्रश्नों का समाधान हम सभी को मिल-जुलकर खोजना है और विविध प्रयासों से प्राकृत अपभ्रंश भाषा को व्यापक रूप में पुनः प्रतिष्ठा करना है, अन्यथा हमारी भावी पीढ़ी हमें इनकी उपेक्षा के लिए कभी क्षमा नहीं कर सकेगी। ११८ Jain Education International For Personal & Private Use Only ❤ www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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