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हउं पइं पुछिमि आक्खहि गअवरु ललिअपहारैणासिअतरुवरु। दूरविणिज्जिअससहरकन्ती दिट्ठी पिअ पई संमुह जन्ती॥
- हे गजवर ! मैं तुझ से पूछ रहा हूँ, उत्तर दे। तू ने अपने सुन्दर प्रहार से वृक्षों का नाश कर दिया है। दूर से ही चन्द्रमा की कान्ति को जीतने के लिये मेरी प्रिया को क्या तूने प्रिय के सम्मुख जाते देखा है ?
सिद्धहेमशब्दानुशासन में समागत दोहा - भल्ला हुआ जो मारिआ, वहिणि म्हारा कंतु। लज्जेजंतु वयंसियहु, जहिभग्गा घर एंतु॥
- प्रस्तुत दोहे में कहा है कि पुरुष के पौरुष और वीर रमणी के दर्प का अनूठा रूप मिलता है। युद्ध क्षेत्र में पति का जूझते हुए मृत्यु प्राप्त करना उस काल की नायिका के लिए गर्व की तथा पीठ दिखाकर भागनेवाले नायक की पत्नी के लिए कितनी लज्जा की बात थी ? अपभ्रंश गद्य का उदाहरण
___ अमंगलिय पुरिसहो कहा एक्कहिं णयरि एक्कु अमंगलिउ मुद्ध पुरिसु आसि। सो एरिसु अत्थि जो को वि पभाये तहो मुह पासेइ, सो भोयणु पि न लहेइ। पउरा वि पच्चूसे कयावि तहो मुहु न पिक्खहिं। नरवइएं वि अमंगलिय पुरिसहो वट्टा सुणिआ। परिक्खेवं नरिंदें एगया पभायकाले सो आहूउ, तासु मुहु दिट्ठ। जइयहं राउ भोयणा उवविसइ, कवलु च मुहि पक्खिवइ, तइयहुं अहिलि नयरे अकम्हा परचक्क भयें हलबोलु जाउ। तावेहिं नरवइ वि भोयणु चयेवि उठेविणु ससेण्णु नयरहे बाहिं निग्गउ।
भय कारणु अदलूण पुणु पच्छा आगउ। समाणु नरिंदु चिंतेइ - इमहो अमंगलियहो सरूवु मई पच्चक्खु दिनु, तओ एहो हंतव्यो। एवं चिंतेप्पि अमंगलिय कोक्काविएप्पिणु वहेवं चंडालसु अप्पेइ। जययहुं
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