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________________ 30 : अंग साहित्य मनन और मीमांसा आवश्यकता होती है। देहदमन, इन्द्रियदमन, मनोदमन तथा आरम्भ - समारम्भ व विषय-कषायों के त्याग के सम्बन्ध में जो बातें शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन में बताई गई हैं, वे सब बातें भिन्न-भिन्न रूप में भिन्न-भिन्न स्थानों पर गीता एवं मनुस्मृति में भी बताई गई है। मनु ने स्पष्ट कहा है कि लोहे के मुख वाला काष्ठ (हल आदि) भूमि का एवं भूमि में रहे हुए अन्य - अन्य प्राणियों का हनन करता है। अतः कृषि की वृत्ति निन्दित है'। यह विधान अमुक कोटि के सच्चे ब्राह्मण के लिए है और वह भी उत्सर्ग के रूप में। अपवाद के तौर पर तो ऐसे ब्राह्मण के लिए भी इससे विपरीत विधान हो सकता है। भूमि की ही तरह जल आदि से संबंधित आरम्भ - समारम्भ का भी मनुस्मृति में निषेध किया गया है। गीता में " सर्वारम्भपरित्यागी को पण्डित कहा गया है एवं बताया गया है कि जो समस्त आरम्भ का परित्यागी है वह गुणातीत है। उसमें देहदमन की भी प्रतिष्ठा की गई है एवं तप के बाह्य व आन्तरिक स्वरूप पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।" जैन परम्परा के त्यागी मुनियों के तपश्चरण की भांति कायक्लेशरूप तप सम्बन्धी प्ररूपणा वैदिक परम्परा को भी अभीष्ट है। इसी प्रकार जलशौच अर्थात् स्नान आदिरूप बाह्य शौच का त्याग भी वैदिक परम्परा को इष्ट है।2 आचारांग के प्रथम व द्वितीय दोनों श्रुतस्कन्धों में आचार-विचार का जो वर्णन है वह सब मनुस्मृति के छठे अध्याय में वर्णित वानप्रस्थ व संन्यास के स्वरूप के साथ मिलता-जुलता है। भिक्षा के नियम, कायक्लेश सहन करने की पद्धति, उपकरण, वृक्ष के मूल के पास निवास, भूमि पर शयन, एक समय भिक्षाचर्या, भूमि का अवलोकन करते हुए गमन करने की पद्धति, चतुर्थ भक्त, अष्टम भक्त आदि अनेक नियमों का जैन परम्परा के त्यागी वर्ग के नियमों के साथ साम्य है। आचारांग के प्रथम अध्ययन शस्त्रपरिज्ञा में समग्र आचारांग का सार आ जाता है अतः यहाँ अन्य अध्ययनों का विस्तारपूर्वक विवेचन न करते हुए आचारांग में आने वाले परमतों का विचार किया जाएगा। 44 आचारांग में उल्लिखित परमत :- आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध में जो परमतों का उल्लेख है वह किसी नामपूर्वक नहीं अपितु ‘“एगे ं' अर्थात् “कुछ लोगों" के रूप में है जिसका विशेष स्पष्टीकरण चूर्णि अथवा वृत्ति में किया गया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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